मथुरा
के सामने हि यमुना पार गोकुल क़स्बा स्तिथ है इसकी सड़क मार्ग के द्वारा
मथुरा से दुरी पंद्रह किलो मीटर है मैप में यह 27.438257 अच्हंस और 77.717749 रेखंछ
पर स्तिथ है तथापि गोकुल सव्द से अभिप्राय गौ + कुल अर्थात गोउ और गौपालो
के रहने के स्थान से है अन्य कुछ भगवती जीवो के मुख से गौ = इन्द्रिया कुल =
निवाश भी हम ने सुना है अर्थात इन्द्रियों के समूह का नाम गोकुल और इस
समूह में रहने वाली गौ,गोपी,ग्वाल जो अहर्निश श्री कृष्ण का चिन्तन करती थी
उनके पुण्य के परीपाक होने पर हि उस रात वशुदेव जी गोकुल रूपी इस
इन्द्रियो के समूह श्री कृष्ण चन्द्र को छोड़ गये थे जहा करोडो वरदानी जिव
श्री कृष्ण चन्द्र के प्रेम की प्यास में
जन्म ले चुके थे जिनके मन बचन और कर्म में केवल कृष्ण प्रेम की प्यास थी
जहा कृष्ण प्रेम के प्यासे निवास करे वह गोकुल है श्री कृष्ण की बाल लीलाओ
का सम्बन्ध भी गोकुल से हि है तभी स्वयं भगवान योग माया को गोकुल जाने का
आदेश देते है यथा ~ गच्छ देवी ब्रजम भद्रे गोभिर्लन्क्र्तम
रोहणी वासुदेवस्य भार्या ss स्ते नन्द गोकुले
स्वरुप
हरी बंस
पुराण में लेख है की यदु के जन्म कल में महावन के आस पास "आभीर" निवाश करते
थे जिनकी बस्ती आभीर पल्ली या घोष कही जाती थी सुरदाश ने अपने छंद में
गाया है की हम तो नन्द घोस कै वासी ... इसी को श्री मद भागवत मै गोकुल कहा
गाया है इस के अलावा पदम् पुराण ब्रह्द बारह पुराण अग्नी पुराण ब्रह्म वैवर्त पुराण श्री कृष्णो उपनिषद गोपाल तापनी उपनिषद और गर्ग सहित आदि मै भी गोकुल का उल्लेख प्राप्त होता है पाचवी सती कै जैन साहित्य की पुस्तक वशुदेव हिंडी मै भी यहाँ की कृष्ण कथा को लिखा गाया है
ईतिहासिक के परिवेश मै
ताम्र युग मै ~ कुछ
इतिहाश करो कै अनुशार श्री कृष्ण का जन्म काल लगभग ई.पु. १५०० माना जाता है
जवकि कुछ विद्वानों के मत मै मथुरा जन्म और गोकुल प्रस्थान ३१२८ विक्रमी
पूर्व बताते है सहस्त्रो वर्षो की इस अवधि में न जाने क्या क्या परिवर्तन
हुए कितने हि स्थान बने और बिगड़े कितने काल कलवित हो गए इस का अनुमान करना
भी कठिन है फिर भी इतिहास पर द्र्स्टी डालने पर ज्ञात होता है की ताम्र
युग में मथुरा बिधमान था ब्रज में इसा पूर्व चोथी से बारहवी सती तक के
अबसेश प्राप्त हुए है ब्रिटिश जनरल कनिघम को मथुरा के चोबारा टीले से ताम्र
युग की अनेक बस्तुये प्राप्त हुई थी गोकुल की उस समय क्या स्तिथि थी इस
विषय में इतिहास मोन है
चोथी से दसवी सती तक ~
चोथी शती के अंत में मेगस्थनीज शूरसेन जनपद की यात्रा पर आया था उसने यहाँ
मथुरा नगर का उल्लेख किया है सातवी शती में चीनी नागरिक हवेन सांग ने यमुना
के दोनों ओर बस्ती होने का उल्लेख किया है जिसे अब गोकुल और मथुरा कहते है
नवी से दसवी शती में ब्रज पर गुर्जर प्रतिहार वंस के नरेशो का शासन था ब्रज का प्रदेश और जनपद का रूप चोदह वि शती के पश्चात हुआ अस्तु जिस समय महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया उस समय मथुरा मंडल का आधपती कुल चन्द्र था जिसकी राजधानी महावन में थी इस का विवरण उलुत्वी द्वारा लिखित पुस्तक तारीखे यामिनी में प्राप्त होता है जो गजनवी का मंत्री था कुछ विद्वान कुलचन्द्र को यदु बंसी राजा भी मानते है जो राजा जयेंद्र पल का पुत्र था इस के प्रमाण स्वरुप महावन में आज भी चोरासी खम्बा नमक ईमारत है है जो कमवन राजिस्थान में भी है जो यहाँ के युद्ध के बिस्थापित यदु बंसी नरेशो ने वहा भी बन बाई है इस समय तक भी गोकुल नामक किसी स्थान का विवरण इतिहाश में नहीं है विद्वानों का मत है की महाभारत काल ई.पु.२०० से ३२० के पश्चात बुध्द,जैन,सैव और साक्त मतों के प्रादुर भाब के कारण वैष्णव धर्म का महत्व कम हो गाया अत गोकुल इसके घटा टॉप में ढका रह गाया अथवा नन्द राय के वृन्दावन गमन के कारण यह बस्ती उजड गयी इसका क्या हुआ यह आज भी शोध का विषय है किन्तु महावन ११९४ ई.से १५२६ ई.तक प्रशासनिक केंद्र रहा यहाँ फोजदार नामक अधिकारी रहा करता था
जिस समय श्री बल्लभ यहाँ पधारे उस समय सिकंदर लोधी भारत का शासक था यह काल १४८८ ई.से १५१७ ई,तक माना जाता है इस समय भी गोकुल बस्ती बिधमान नहीं थी जब बाबर का अधिपत्य हुआ तो महावन में मरगुव नामक व्यक्ति को न्युक्त किया गया इस प्रकर मुग़ल कल में महावन हमेशा केंद्र में रहा उस समय मथुरा सामान्य नगर हि था अत महावन को इतिहाश में सदा स्थान प्राप्त हुआ जो कृष्ण कालीन सब्द ब्रह्द वन का हि पर्याय बची सब्द था इसी बृहद वन में हि गोकुल था जो इतिहास में बिलुप्त प्राय हो गया था किन्तु इतिहाश में कुछ लिखा हो या न हो यह हमेशा से उच्च कोटि के संतो का आकर्सन रहा और उनके द्वारा अपने भक्तो को इस पवित्तर भूमि की महत्ता का वर्णन प्राप्त होता रहा इससे लिखित न सही सामाजिक धारणा में श्री मद गोकुल का बर्चस्व हमेशा रहा जिसको मुगलों और ब्रिटिशो के द्वारा समय समय स्वीकार्य किया गया
श्री महाप्रभु जी द्वारा गोकुल का अन्वेसन
संवत १५५९ में श्री बल्लभा चार्य का ब्रजागमन गोकुल हि नहीं अपितु समस्त ब्रज मंडल के भाग्य उदय का करक हुआ उस समय तक ब्रज के अनेको प्राचीन स्थल घन घोर बीहड़ो में बिलीन हो गए थे ऐसी परिस्थिति में कृष्णोपासक महात्मा जानो ने प्राचीन उल्लेखो के आधार पर पुनह इनको प्रकट किया इसी कार्य बस जव श्री बल्लभ यमुना तट के भीषण वनों में बिचरण करते हुए गोकुल पधारे तो यहाँ के प्राचीन स्थलों के अन्वेसन में स्वयं को असमर्थ पाया तो श्री यमुना जी में स्त्री रूप में प्रकट होकर श्री बल्लभ का मार्गदर्शन किया और प्राचीन गोविन्द घाट के स्थल को दिखाया और कहा की इस के निकट का जो भू भाग है वही प्राचीन गोकुल है श्री बल्लभ जब यहाँ पहुचे तो यहाँ पूर्ब से हि एक योगेश्वर तप रहे थे श्री बल्लभ के दर्शन कर उन्होंने स्वयं को धन्य माना उन्होंने श्री बल्लभ को कहा की यहाँ सात मंदिरों का निर्माण होगा और गोकुल पुनह बशेगा किन्तु मेरा यह स्थान स्थित रहे ऐशी कृपा करना कालांतर में श्री द्वारिका धीस मंदिर निर्माण के समय यह पर्णकुटी सोलह हात गहराई में धस गयी और उस के ऊपर मंदिर निर्माण हुआ इस प्रकार श्री बल्लभ प्रभु को गोकुल को प्रकट करने का श्रेय प्राप्त हुआ इसी गोविन्द घाट नामक स्थल पर उनकी प्रथम बैठक स्थित है यही पर संवत १५५० में उनको पुस्ती मार्ग की स्थापना की प्रेरणा प्राप्त हुई गोकुल में पुष्टिमार्ग की स्थापना के साथ हि भक्ति मार्ग की ऐसी भव्य भागीरथी प्रवाहमान हुई जिसकी तरल - सरल तरंगो के स्पर्स मात्र से मानवता के मन -प्राण पुलकित हो गये उनमे नविन चेतना का संचार हुआ और इस प्रबाह में अनेक भक्त जन आचार्य चरण के सिष्य हुये और गोकुल को पुनह विश्व व्यापी ख्याति प्राप्त हुई
श्री बल्लभा चार्य जी के दो पुत्र हुए प्रथम गोपीनाथ जी द्वितीय श्री बिठ्ठल नाथ जी श्री गोपीनाथ जी का जन्म १५६८ विक्रमी में हुआ इनके विषय में प्राप्त विवरण से यह ज्ञात हुआ है की यह विरक्त प्रवर्ती और अल्प जीवी थे द्वतीय पुत्र श्री बिठ्ठल नाथ जी एक अदितीय महा पुरुष थे इनका जन्म १५७२ पौस वादी 9 शुक्रवार को चुनार नामक स्थान पर हुआ गोकुल और पुष्टि मार्ग के विकाश में आप श्री का बिसिस्ट योगदान रहा है अथ इन के विषय में लिखना असम्भब है इनके बहूआयामी व्य्क्तिव्त के सम्मान को जानने को इस के विषय में आप हमारी साईट में विस्तृत जानकारी पा सकते है
पुष्टि संप्रदाय शुधाद्वेत
जिस संप्रदाय के अभिर्भाब ने गोकुल और उस के अध्यात्मिक वेभब को पुनह चर्मौत्कर्ष पर पहुचाया वह पुष्टि मार्ग हि था इस संप्रदाय के सिधान्तो का संछिप्त परिचय हम अपने पाठको को यहाँ देना अवश्यक समझते है क्योकि वर्तमान गोकुल के नव जीवन का यह महत्व पूर्ण पछ है इतिः
सिध्दांत
शुद्धाद्वेत भक्ति मार्ग में श्री बल्लभ ने चार प्रस्थानो को प्रमाण स्वरुप स्वीकार्य की किया है ~
(१) वेदा (२) श्री कृष्ण व्यक्यानी (३) व्यास सुत्र्रानी (४) समाधी भाषा व्यसय्स प्रमाण तच्चतुष्ट्यम
" मर्गेयम सर्व मर्गानामुत्ताम्ह परिकीर्त:
यस्मिन पात भय नास्ति मोचक: सर्वथा हरे"
ये भक्ति मार्ग सब मार्गो विशेष है पतन के भय से रहित है यज्ञ याग आदि क्रियाये तो अत्यंत कठिन है और धन से पूरी होने वाली है उसमे भी उनके लिये आपमें विद्वता का होना अवश्यक है जिससे की मन्त्र उच्चारण की सुध्धता प्राप्त हो सके अत सर्वजन सुलभइस भक्ति मार्ग को अपनाना हि श्रेस्ठ है इस से सभी का उद्धार सम्भब है
जिव और ब्रह्म के सत्य ज्ञान के साथ हि सर्वस्व समर्पण के साथ इस मार्ग में
प्रवेस पाया जाता है और अपने प्रतिदिन के कर्म यथावत करते हुये भी इस
मार्ग के द्वारा सहज हि समस्त सुख दुखो की जड़ अहंता ममता से अपने आप को
बचाया जा सकता है यह प्रक्रिया इस मार्ग की विशेषता है श्री कृष्ण की सेवा
(भक्ति) करते हुये प्रेम की उतरोत्तर ब्रधि द्वारा परमानन्द में लीन हो
जाना इस मार्ग का अनूठा फल है जो किसी भी प्रकार साधन से कभी सिद्ध नहीं हो
सकता केवल भगवत अनुग्रह द्वारा हि प्राप्त हो सकता है बस्तुत: पुष्टि सब्द
का यही तात्पर्य है
लछन
श्री हरिराय महाप्रभु जी ने पुस्ती मार्ग लाछ्नानी नमक ग्रन्थ में मार्ग की व्याख्या करते हुये स्पस्ट किया है की इस मार्ग में श्री भगवान के अनुग्रह
से हि समस्त सिधिया प्राप्त हो जाती है भगवान जिव का वरण करने को किसी हेतु अथवा योग्यता का विचार नहीं करते भावना मात्र का पोषण हि पुष्टि है प्रभु की सेवा से सयोग का शुख तो मिलता हि है अपितु विरहवस्था का आनंद तो उससे भी अधिक है प्रभु का साछात्कर के लिए दीनता का भाव होना अबस्यक है इस मार्ग में भोग इन्द्रियों के संतोष के लिए नहीं प्रभु के लिए तथा और प्रसाद सेवक के लिए होता है
अस्ताछर मंत्र और आत्मा निवेदन
अनन्य भाब से श्री कृष्ण की सरण गति हि जिव का मुख्य उदेश्य है और श्री कृष्णा सरण मम: सरण गति मंत्र है इसके श्रवण / जप काल में सात प्रकार की भक्ति सिद्ध होती है ततपश्चात ब्रह्मसम्बन्ध रूप दिच्छा प्राप्त होती है इसको ग्रहण करने के पश्चात हि जिव सेवा का अधिकारी बन पाता है
किन्तु मार्ग के आचार्य यह दिच्छा तभी प्रदान करते है जव सरणागति मंत्र के प्रताप से जिव प्रभु का दासत्व स्वीकार्य करने को तत्पर हो जाता है सेवा के सम्मुख मोछ भी तुच्छ है ऐसी प्रवर्ती व् बिचार वान हो जाता है सर्वस्व का समर्पण करने वाला हि सेवा के द्वारा भगवन को संतुस्ट कर सकता है भगवान ने श्री गीता उपदेश में महा मनस्वी पुरुष अर्जुन से कहा है हे पार्थ तुम जो कुछ भी करो मुझको अर्पण करो इसी का नाम आत्म निवेदन है यही ब्रह्म सम्बन्ध का तात्पर्य भी है
सेवा भाव
पुष्टि मार्ग पूजा नहीं सेवा प्रधान है सेवा का तात्पर्य प्रभु से एकत्व प्राप्त करना है और यहाँ सकारात्मक लीला मूर्ति श्री कृष्ण हि अराध्य है
"सर्वदा सर्व भवेन मजनियो ब्रजाधिप "
क्योकि ब्रह्मा,विष्णु,महेश त्रिगुणात्मक है निर्गुण है किन्तु श्री कृष्ण सगुण स्वरुप आनंद घन है रस के रसिया है अत: मानशी,तनूजा और वित्तजा सेवाए उपेछित है सर्व प्रथम हिर्दय में प्रभु को स्थान इस कार्य की सिद्धि के लिये सशरीर अलंकर अर्पित करो इस सम्बन्ध में कुछ द्रव्य भी व्यय करना आवस्यक है स्नेह समर्पण की वृधि के साथ भक्ति की सिद्धि प्राप्त होने लगती है क्योकि सामान्य जीवधारियो को वेदों का श्रुतियो का ज्ञान केसे हो सकता है अत:वर्तमान में सेवा रूपी मार्ग हि फल दायक है श्री बल्लभा चार्य कहते है की जिव और कुछ न कर सके तो इतना हि करना चाहिये की वह मान ले की श्री कृष्ण हि सर्वस्व है में तो मात्र निमित्त हु इस भावना के हिर्दय में उदय होते हि उसके योगछेम की चिंता उन लीला मई की हो जाती है और चित्रगुप्त को आपके प्रारब्ध को लिखना रोक देना पड़ता है गीता श्लोक
अनन्य चिंत संतोमा ये जाना पर उपासते .....
गोपीजन
पुष्टिमार्ग में भगवती जीवो को गोपी जन कहा जाता है और यह गोपी जन गृह कार्य में रत रहते हुये सोते जागते श्री कृष्ण चिंतन लीन रहते है इन सभी ने वेदों का श्रुतियो का ज्ञान किया हो ऐसा सम्भब नहीं है तथापि इन को स्वरूपानंद की प्राप्ति हो जाती है और निश्चित हि इन के संपर्क में आने वाला इन के इस स्वरुप को स्पस्ट अग्नी ताप के सामान अनुभब करता है और इन के चमत्कारिक व्यक्तिव का लाभ भी प्राप्त करता है क्योकि इन " भक्त की टेक रखे है भगवन " यह हमने सत्संग में सुना है और यह सत्य भी है क्योकि श्री कृष्ण की अनेको कथाये प्रचिलित है जिनमे उन्होंने स्वयं की न मानकर भक्त की अभिलाषा पूरी की है
श्रीगोस्वामी जी (बिठ्ठल नाथ जी ) गोकुल और पुष्टि मार्ग श्री बल्लभ चाय जी के द्वितीय पुत्र श्री बिठ्ठल नाथ गोस्वामी जी एक अदितीय
महा पुरष थे आपने पुष्टि मार्ग सेवा प्रणाली मै ललित कलाओ का समावेश कर
ऐसा नव भव्य स्वरुप दिया जिससे सम्प्रदाय को रसात्मक आकर्षण प्राप्त हुआ
सुर दास, कुम्भन दास परमान्द दास कृष्ण दास श्री बल्लभा चार्य जी के
गोविन्द स्वामी छीत स्वामी चतुभुज दास नन्द दास आदि कविओ को ठाकुर जी की
सेवा में आने को मार्ग दर्शित किया
राग भोग श्रंगार प्रधान स्वप्रवित सेवा प्रणाली द्वारा अहर्निश सेवा में लीन श्री बिठ्ठल नाथ जी असाधारण विद्वान थे श्रेस्ठ संगीतज्ञ और अदितीय कला मर्मज्ञ थे आर्य कलाओ के तो आप महान सरछ्क हुये आपने समस्त ललित कलाओ को आध्यात्मोमुखी बनाकर उन्हे अपनी सेवा प्रणाली में संनिविस्ट कर लिया फलत उनके काल से लेकर आज तक बल्लभ सम्प्रदाय में ललित कलाओ का भरपूर विकाश होता रहा है इस संप्रदाय के देवालयों में आज भी फूल मंडलियो रथ यत्राओ हिंडोलों पानलों साझियो हत्रियो दीपदान देवोत्थान वसंत डोल जल विहार दानलीला थाना अन्यान अनेक बारहमाशी उत्सवो की झाकिया ठाकुर जी की सावरिया सेवा में उपयोगी विबिध प्रकार के उपकरणों आरतियो खिलोने चित्रो रेखांकनो पिछ्वायियो और श्री बिग्रह की श्रंगार सामिग्री में मूर्ति मान होते देखा जा सकता है श्रंगार के स्वर्ण रजत जटित नाना बिधि रतना भरण यहाँ राजशी बेभब को साकार करते है इन मंदिरों में भागवान के भोग कुनबाड़े छप्पन भोग तथा अन्नकूट उत्सवो में सैकड़ो प्रकार के व्यंजनों के दर्शन पाक कला के ऐसी बिधि का और अनूठे व्यंजनों का द्रश्य उपस्थित करता है जो और कही दुर्लभ है दर्शनों के समय ऋतू और कला अनुशार संगीत के बिभिन्न रगों का सबिधि तान यही सुनाई देती है शास्त्रीय संगीत में आबद्ध पदों की कीर्तन प्रणाली अपनी विसिस्टता के कारन हवेली संगीत कै नाम से सुप्रसिद्ध है और इनके द्वारा पालित पाक कला वर्तमान में मर्यादा में भी यदा कदा दिखाई देने लगी है
एक बार श्री गोस्वामी जी महाराज के पास अकबरी दरबार से मिया तानसेन नवनीत प्रिया मंदिर में आये और अपने कला कौसल का प्रदर्शन किया तब गोस्वामी जी ने उनको स्वर्ण मुद्राओ के साथ एक कोडी भी उपहार स्वरुप दी जिसका आशय था की तुम राज गायक के रूप में स्वर्ण मुद्राओ के अधिकारी हो किन्तु हमारे अस्त शखा के सामने कुछ भी नहीं जो प्रभु के सामने उनको रिझाने को गाते है
गोस्वामी जी की गोकुल बस्ती स्थापन के साथ हि यहाँ बड़े बड़े संतो हरी भक्तो कवियों कलाकारों राजा महाराजो दरबारियों और व्यवसायियो का आबागमन तथा स्थायी वास आरम्भ हो गया था उनका व्यक्तिव और विसेस्तः उनके द्वारा प्रवर्तित प्रभु सेवा प्रणाली इतनी अदभुद आकार्सक और बैभब मई थी लोग दूर दूर से गोकुल की और खिचे चले आते थे यहाँ के परम सात्विक और सांतिमय वातावरण में इसी के फलस्वरूप उस कल में यहाँ साहित्य संगीत और कला की त्रवेनी प्रभाबित होने लगी जिस से सभी धन्य धन्य हो उठे इस प्रकार अनेक गुणवन व्यक्ति गोस्वामी जी से दीछित हुये और ब्रज भाषा सर्व भोम रूप धारण करने लगी
मार्ग के शिष्यगन एक परिचय
सुरदाश ~ सुरदाश जी स्थान अस्ट सखाओ में प्रथम थे गुसाई जी उनको सूर सागर कहते थे श्री बल्लभा चार्य जी सुरदाश को गोकुल लेकर आये थे क्योकि गोकुल हि बाल स्वरुक कृष्ण का घर है उस समय गोकुल में नवनीत प्रिया जी का बाल बिग्रह बिराजमान था अत यही से प्रेरित होकर सूरदास ने बाल लीला का ऐसा बर्णन किया जो विश्व साहित्य में बेजोड़ है इस प्रकार गोकुल को सुर की आध्यात्मिक पाठशाला कहा जा सकता है आपका जन्म सन१५३५ में सिंही नमक स्थान पर हुआ था देह्बसन सन १६४० चन्द्र सरोवर गिरिराज जी में हुआ
परमानन्द दास ~ये भी श्री बल्लभा चार्य जी के साथ गोकुल पधारे आपने परमानन्द सागर,ऊधव
संवाद,राम जन्मो उत्सव तथा गंगाजी के पद लिखे आपका जन्म सन १५५० में कनोज
में हुआ देहाबसन सन १६४१ में गिरिराज जी जतीपुरा में हुआ
नवी से दसवी शती में ब्रज पर गुर्जर प्रतिहार वंस के नरेशो का शासन था ब्रज का प्रदेश और जनपद का रूप चोदह वि शती के पश्चात हुआ अस्तु जिस समय महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया उस समय मथुरा मंडल का आधपती कुल चन्द्र था जिसकी राजधानी महावन में थी इस का विवरण उलुत्वी द्वारा लिखित पुस्तक तारीखे यामिनी में प्राप्त होता है जो गजनवी का मंत्री था कुछ विद्वान कुलचन्द्र को यदु बंसी राजा भी मानते है जो राजा जयेंद्र पल का पुत्र था इस के प्रमाण स्वरुप महावन में आज भी चोरासी खम्बा नमक ईमारत है है जो कमवन राजिस्थान में भी है जो यहाँ के युद्ध के बिस्थापित यदु बंसी नरेशो ने वहा भी बन बाई है इस समय तक भी गोकुल नामक किसी स्थान का विवरण इतिहाश में नहीं है विद्वानों का मत है की महाभारत काल ई.पु.२०० से ३२० के पश्चात बुध्द,जैन,सैव और साक्त मतों के प्रादुर भाब के कारण वैष्णव धर्म का महत्व कम हो गाया अत गोकुल इसके घटा टॉप में ढका रह गाया अथवा नन्द राय के वृन्दावन गमन के कारण यह बस्ती उजड गयी इसका क्या हुआ यह आज भी शोध का विषय है किन्तु महावन ११९४ ई.से १५२६ ई.तक प्रशासनिक केंद्र रहा यहाँ फोजदार नामक अधिकारी रहा करता था
जिस समय श्री बल्लभ यहाँ पधारे उस समय सिकंदर लोधी भारत का शासक था यह काल १४८८ ई.से १५१७ ई,तक माना जाता है इस समय भी गोकुल बस्ती बिधमान नहीं थी जब बाबर का अधिपत्य हुआ तो महावन में मरगुव नामक व्यक्ति को न्युक्त किया गया इस प्रकर मुग़ल कल में महावन हमेशा केंद्र में रहा उस समय मथुरा सामान्य नगर हि था अत महावन को इतिहाश में सदा स्थान प्राप्त हुआ जो कृष्ण कालीन सब्द ब्रह्द वन का हि पर्याय बची सब्द था इसी बृहद वन में हि गोकुल था जो इतिहास में बिलुप्त प्राय हो गया था किन्तु इतिहाश में कुछ लिखा हो या न हो यह हमेशा से उच्च कोटि के संतो का आकर्सन रहा और उनके द्वारा अपने भक्तो को इस पवित्तर भूमि की महत्ता का वर्णन प्राप्त होता रहा इससे लिखित न सही सामाजिक धारणा में श्री मद गोकुल का बर्चस्व हमेशा रहा जिसको मुगलों और ब्रिटिशो के द्वारा समय समय स्वीकार्य किया गया
श्री महाप्रभु जी द्वारा गोकुल का अन्वेसन
संवत १५५९ में श्री बल्लभा चार्य का ब्रजागमन गोकुल हि नहीं अपितु समस्त ब्रज मंडल के भाग्य उदय का करक हुआ उस समय तक ब्रज के अनेको प्राचीन स्थल घन घोर बीहड़ो में बिलीन हो गए थे ऐसी परिस्थिति में कृष्णोपासक महात्मा जानो ने प्राचीन उल्लेखो के आधार पर पुनह इनको प्रकट किया इसी कार्य बस जव श्री बल्लभ यमुना तट के भीषण वनों में बिचरण करते हुए गोकुल पधारे तो यहाँ के प्राचीन स्थलों के अन्वेसन में स्वयं को असमर्थ पाया तो श्री यमुना जी में स्त्री रूप में प्रकट होकर श्री बल्लभ का मार्गदर्शन किया और प्राचीन गोविन्द घाट के स्थल को दिखाया और कहा की इस के निकट का जो भू भाग है वही प्राचीन गोकुल है श्री बल्लभ जब यहाँ पहुचे तो यहाँ पूर्ब से हि एक योगेश्वर तप रहे थे श्री बल्लभ के दर्शन कर उन्होंने स्वयं को धन्य माना उन्होंने श्री बल्लभ को कहा की यहाँ सात मंदिरों का निर्माण होगा और गोकुल पुनह बशेगा किन्तु मेरा यह स्थान स्थित रहे ऐशी कृपा करना कालांतर में श्री द्वारिका धीस मंदिर निर्माण के समय यह पर्णकुटी सोलह हात गहराई में धस गयी और उस के ऊपर मंदिर निर्माण हुआ इस प्रकार श्री बल्लभ प्रभु को गोकुल को प्रकट करने का श्रेय प्राप्त हुआ इसी गोविन्द घाट नामक स्थल पर उनकी प्रथम बैठक स्थित है यही पर संवत १५५० में उनको पुस्ती मार्ग की स्थापना की प्रेरणा प्राप्त हुई गोकुल में पुष्टिमार्ग की स्थापना के साथ हि भक्ति मार्ग की ऐसी भव्य भागीरथी प्रवाहमान हुई जिसकी तरल - सरल तरंगो के स्पर्स मात्र से मानवता के मन -प्राण पुलकित हो गये उनमे नविन चेतना का संचार हुआ और इस प्रबाह में अनेक भक्त जन आचार्य चरण के सिष्य हुये और गोकुल को पुनह विश्व व्यापी ख्याति प्राप्त हुई
श्री बल्लभा चार्य जी के दो पुत्र हुए प्रथम गोपीनाथ जी द्वितीय श्री बिठ्ठल नाथ जी श्री गोपीनाथ जी का जन्म १५६८ विक्रमी में हुआ इनके विषय में प्राप्त विवरण से यह ज्ञात हुआ है की यह विरक्त प्रवर्ती और अल्प जीवी थे द्वतीय पुत्र श्री बिठ्ठल नाथ जी एक अदितीय महा पुरुष थे इनका जन्म १५७२ पौस वादी 9 शुक्रवार को चुनार नामक स्थान पर हुआ गोकुल और पुष्टि मार्ग के विकाश में आप श्री का बिसिस्ट योगदान रहा है अथ इन के विषय में लिखना असम्भब है इनके बहूआयामी व्य्क्तिव्त के सम्मान को जानने को इस के विषय में आप हमारी साईट में विस्तृत जानकारी पा सकते है
पुष्टि संप्रदाय
जिस संप्रदाय के अभिर्भाब ने गोकुल और उस के अध्यात्मिक वेभब को पुनह चर्मौत्कर्ष पर पहुचाया वह पुष्टि मार्ग हि था इस संप्रदाय के सिधान्तो का संछिप्त परिचय हम अपने पाठको को यहाँ देना अवश्यक समझते है क्योकि वर्तमान गोकुल के नव जीवन का यह महत्व पूर्ण पछ है इतिः
सिध्दांत
शुद्धाद्वेत भक्ति मार्ग में श्री बल्लभ ने चार प्रस्थानो को प्रमाण स्वरुप स्वीकार्य की किया है ~
(१) वेदा (२) श्री कृष्ण व्यक्यानी (३) व्यास सुत्र्रानी (४) समाधी भाषा व्यसय्स प्रमाण तच्चतुष्ट्यम
ये भक्ति मार्ग सब मार्गो विशेष है पतन के भय से रहित है यज्ञ याग आदि क्रियाये तो अत्यंत कठिन है और धन से पूरी होने वाली है उसमे भी उनके लिये आपमें विद्वता का होना अवश्यक है जिससे की मन्त्र उच्चारण की सुध्धता प्राप्त हो सके अत सर्वजन सुलभइस भक्ति मार्ग को अपनाना हि श्रेस्ठ है इस से सभी का उद्धार सम्भब है

कृष्णनुग्रह रुपही इति पुश्टी
लछन
श्री हरिराय महाप्रभु जी ने पुस्ती मार्ग लाछ्नानी नमक ग्रन्थ में मार्ग की व्याख्या करते हुये स्पस्ट किया है की इस मार्ग में श्री भगवान के अनुग्रह
से हि समस्त सिधिया प्राप्त हो जाती है भगवान जिव का वरण करने को किसी हेतु अथवा योग्यता का विचार नहीं करते भावना मात्र का पोषण हि पुष्टि है प्रभु की सेवा से सयोग का शुख तो मिलता हि है अपितु विरहवस्था का आनंद तो उससे भी अधिक है प्रभु का साछात्कर के लिए दीनता का भाव होना अबस्यक है इस मार्ग में भोग इन्द्रियों के संतोष के लिए नहीं प्रभु के लिए तथा और प्रसाद सेवक के लिए होता है
अस्ताछर मंत्र और आत्मा निवेदन
अनन्य भाब से श्री कृष्ण की सरण गति हि जिव का मुख्य उदेश्य है और श्री कृष्णा सरण मम: सरण गति मंत्र है इसके श्रवण / जप काल में सात प्रकार की भक्ति सिद्ध होती है ततपश्चात ब्रह्मसम्बन्ध रूप दिच्छा प्राप्त होती है इसको ग्रहण करने के पश्चात हि जिव सेवा का अधिकारी बन पाता है
किन्तु मार्ग के आचार्य यह दिच्छा तभी प्रदान करते है जव सरणागति मंत्र के प्रताप से जिव प्रभु का दासत्व स्वीकार्य करने को तत्पर हो जाता है सेवा के सम्मुख मोछ भी तुच्छ है ऐसी प्रवर्ती व् बिचार वान हो जाता है सर्वस्व का समर्पण करने वाला हि सेवा के द्वारा भगवन को संतुस्ट कर सकता है भगवान ने श्री गीता उपदेश में महा मनस्वी पुरुष अर्जुन से कहा है हे पार्थ तुम जो कुछ भी करो मुझको अर्पण करो इसी का नाम आत्म निवेदन है यही ब्रह्म सम्बन्ध का तात्पर्य भी है
सेवा भाव
पुष्टि मार्ग पूजा नहीं सेवा प्रधान है सेवा का तात्पर्य प्रभु से एकत्व प्राप्त करना है और यहाँ सकारात्मक लीला मूर्ति श्री कृष्ण हि अराध्य है
क्योकि ब्रह्मा,विष्णु,महेश त्रिगुणात्मक है निर्गुण है किन्तु श्री कृष्ण सगुण स्वरुप आनंद घन है रस के रसिया है अत: मानशी,तनूजा और वित्तजा सेवाए उपेछित है सर्व प्रथम हिर्दय में प्रभु को स्थान इस कार्य की सिद्धि के लिये सशरीर अलंकर अर्पित करो इस सम्बन्ध में कुछ द्रव्य भी व्यय करना आवस्यक है स्नेह समर्पण की वृधि के साथ भक्ति की सिद्धि प्राप्त होने लगती है क्योकि सामान्य जीवधारियो को वेदों का श्रुतियो का ज्ञान केसे हो सकता है अत:वर्तमान में सेवा रूपी मार्ग हि फल दायक है श्री बल्लभा चार्य कहते है की जिव और कुछ न कर सके तो इतना हि करना चाहिये की वह मान ले की श्री कृष्ण हि सर्वस्व है में तो मात्र निमित्त हु इस भावना के हिर्दय में उदय होते हि उसके योगछेम की चिंता उन लीला मई की हो जाती है और चित्रगुप्त को आपके प्रारब्ध को लिखना रोक देना पड़ता है
अनन्य चिंत संतोमा ये जाना पर उपासते .....
गोपीजन
पुष्टिमार्ग में भगवती जीवो को गोपी जन कहा जाता है और यह गोपी जन गृह कार्य में रत रहते हुये सोते जागते श्री कृष्ण चिंतन लीन रहते है इन सभी ने वेदों का श्रुतियो का ज्ञान किया हो ऐसा सम्भब नहीं है तथापि इन को स्वरूपानंद की प्राप्ति हो जाती है और निश्चित हि इन के संपर्क में आने वाला इन के इस स्वरुप को स्पस्ट अग्नी ताप के सामान अनुभब करता है और इन के चमत्कारिक व्यक्तिव का लाभ भी प्राप्त करता है क्योकि इन " भक्त की टेक रखे है भगवन " यह हमने सत्संग में सुना है और यह सत्य भी है क्योकि श्री कृष्ण की अनेको कथाये प्रचिलित है जिनमे उन्होंने स्वयं की न मानकर भक्त की अभिलाषा पूरी की है

राग भोग श्रंगार प्रधान स्वप्रवित सेवा प्रणाली द्वारा अहर्निश सेवा में लीन श्री बिठ्ठल नाथ जी असाधारण विद्वान थे श्रेस्ठ संगीतज्ञ और अदितीय कला मर्मज्ञ थे आर्य कलाओ के तो आप महान सरछ्क हुये आपने समस्त ललित कलाओ को आध्यात्मोमुखी बनाकर उन्हे अपनी सेवा प्रणाली में संनिविस्ट कर लिया फलत उनके काल से लेकर आज तक बल्लभ सम्प्रदाय में ललित कलाओ का भरपूर विकाश होता रहा है इस संप्रदाय के देवालयों में आज भी फूल मंडलियो रथ यत्राओ हिंडोलों पानलों साझियो हत्रियो दीपदान देवोत्थान वसंत डोल जल विहार दानलीला थाना अन्यान अनेक बारहमाशी उत्सवो की झाकिया ठाकुर जी की सावरिया सेवा में उपयोगी विबिध प्रकार के उपकरणों आरतियो खिलोने चित्रो रेखांकनो पिछ्वायियो और श्री बिग्रह की श्रंगार सामिग्री में मूर्ति मान होते देखा जा सकता है श्रंगार के स्वर्ण रजत जटित नाना बिधि रतना भरण यहाँ राजशी बेभब को साकार करते है इन मंदिरों में भागवान के भोग कुनबाड़े छप्पन भोग तथा अन्नकूट उत्सवो में सैकड़ो प्रकार के व्यंजनों के दर्शन पाक कला के ऐसी बिधि का और अनूठे व्यंजनों का द्रश्य उपस्थित करता है जो और कही दुर्लभ है दर्शनों के समय ऋतू और कला अनुशार संगीत के बिभिन्न रगों का सबिधि तान यही सुनाई देती है शास्त्रीय संगीत में आबद्ध पदों की कीर्तन प्रणाली अपनी विसिस्टता के कारन हवेली संगीत कै नाम से सुप्रसिद्ध है और इनके द्वारा पालित पाक कला वर्तमान में मर्यादा में भी यदा कदा दिखाई देने लगी है
एक बार श्री गोस्वामी जी महाराज के पास अकबरी दरबार से मिया तानसेन नवनीत प्रिया मंदिर में आये और अपने कला कौसल का प्रदर्शन किया तब गोस्वामी जी ने उनको स्वर्ण मुद्राओ के साथ एक कोडी भी उपहार स्वरुप दी जिसका आशय था की तुम राज गायक के रूप में स्वर्ण मुद्राओ के अधिकारी हो किन्तु हमारे अस्त शखा के सामने कुछ भी नहीं जो प्रभु के सामने उनको रिझाने को गाते है
गोस्वामी जी की गोकुल बस्ती स्थापन के साथ हि यहाँ बड़े बड़े संतो हरी भक्तो कवियों कलाकारों राजा महाराजो दरबारियों और व्यवसायियो का आबागमन तथा स्थायी वास आरम्भ हो गया था उनका व्यक्तिव और विसेस्तः उनके द्वारा प्रवर्तित प्रभु सेवा प्रणाली इतनी अदभुद आकार्सक और बैभब मई थी लोग दूर दूर से गोकुल की और खिचे चले आते थे यहाँ के परम सात्विक और सांतिमय वातावरण में इसी के फलस्वरूप उस कल में यहाँ साहित्य संगीत और कला की त्रवेनी प्रभाबित होने लगी जिस से सभी धन्य धन्य हो उठे इस प्रकार अनेक गुणवन व्यक्ति गोस्वामी जी से दीछित हुये और ब्रज भाषा सर्व भोम रूप धारण करने लगी
मार्ग के शिष्यगन एक परिचय
सुरदाश ~ सुरदाश जी स्थान अस्ट सखाओ में प्रथम थे गुसाई जी उनको सूर सागर कहते थे श्री बल्लभा चार्य जी सुरदाश को गोकुल लेकर आये थे क्योकि गोकुल हि बाल स्वरुक कृष्ण का घर है उस समय गोकुल में नवनीत प्रिया जी का बाल बिग्रह बिराजमान था अत यही से प्रेरित होकर सूरदास ने बाल लीला का ऐसा बर्णन किया जो विश्व साहित्य में बेजोड़ है इस प्रकार गोकुल को सुर की आध्यात्मिक पाठशाला कहा जा सकता है आपका जन्म सन१५३५ में सिंही नमक स्थान पर हुआ था देह्बसन सन १६४० चन्द्र सरोवर गिरिराज जी में हुआ


छित स्वामी ~ छित स्वामी मथुरा निवासी थे ये एक बार थोथे नारियल में खोटा सिक्का रख कर गोसाई जी को भेट करने आये गोसाई जी ने नारियल तुड बा कर बाटा टी मीठा निकला खोटे रूपये को भी चला दिया इस चमत्कार से प्रभाबित होकर गोसाई जी के सिष्य हो गए और इस पद की रचना की आपका जन्म सन १५७१ मथुरा में देह्बसान सन १६४२ अप्सरा कुण्ड पर हुआ " भई अब गिरधर सो पहिचान कपट रूप छ्लवे आयो पुरसोत्तम नहीं जान छोटो बढ्यो कछु नहीं जान्यो छे रह्यो अज्ञान छित स्वामी देखत अपनाओ श्री बिठ्ठल कृपा निधान "
आप वीरवल के पुरोहित भी थे एक बार वीरवल की उपस्थति में गोकुल में नवनीत प्रिया जी के दर्शन के समय उन्होने यह पद गाया ~
"प्रिय नवनीत पालने झूले बिठ्ठल नाथ झुलावे कबहुक आप संग मिल झूले कबहुक उतर झुलावे"
चतुर भुज दास ~यह कुभन दास जी के पुत्र थे जम्नावाते नाम के गाव में रहते थे यह अकबर के बहुत कृपा पात्र थे आगरा में बीरवल के पास रहे इन्होने दश वर्ष की आयु में गोसाई जी से दिच्छा ली आपका जन्म सन १५९७ में जमुनावता में और देहाबसान सन१६४२ में रूद्र कुण्ड पर हुआ

मार्ग अनन्य कवी गण
(१) वृन्दावन दास
(२) चतुर बिहारी
(३) माधो दास
(४) यादवेन्द्र दास
(५) धोधि
(६) तुलसी दास
(७) कटहरिया
(८) जाड़ा कृष्ण दास
(९) अली खान
(१०) विष्णु दास छिपा
(२) चतुर बिहारी
(३) माधो दास
(४) यादवेन्द्र दास
(५) धोधि
(६) तुलसी दास
(७) कटहरिया
(८) जाड़ा कृष्ण दास
(९) अली खान
(१०) विष्णु दास छिपा
मार्ग नरेश गण
उस समय के राजा महाराजा गण ने भी गोसाई जी दिच्छा ग्रहण की और गोकुल आकर
रहे और पुष्टि मार्ग की सेवा प्रणाली को अपनाया गोस्वामी जी के सिष्य हुए
राजा प्रथ्वी सिंह ~ ये बीकानेर नरेश राजा कल्याणमल के त्रतीय पुत्र थे परम वैस्नव संस्कृत और
डिंगल साहित्य के मर्मग्य थे इन्होने रुकमनी री बेल और श्याम लीला ग्रन्थ
लिखेराजा आसकरण ~ नटवर गड के महाराजा अपना सर्सस्व त्याग कर गोकुल आये इन के भांजे का बंस किशन गड राजिस्थान में है जो परंपरा गत रूप से सम्प्रदाय
के सिष्य है गोसाई जी के द्वारा जतीपुरा में छप्पन भोग के समय आप हि यदुनाथ जी को मनाकर लाये आसकरण नित्य गोकुल के रमण स्थल वर्तमान रमण रेती जाया करते थे यही इन्हे महाराष करते हुये भागवान के दर्शन हुये मोहन नागर इन के उपास्य श्री बिग्रह थे जो इस समय मोहन लाल गुजरात के धोलका गाव में नागर ठाकुर जी की श्री बिग्रह मुंबई में बिराजमान है
राजा भीमसेन ~
ये गुजरात के राजा थे पूर्व जनम की बात पूछते फिरते थे जब गोकुल के ठकुरानी घाट पर आये तो गुसाई जी ने उनको उनके पूर्व जनम की बाते बताई और दीछित किया
बीरबल ~
बीरबल वही है जो बादशाह अकवर के दरबारी हुआ करते थे इनके बुद्धि मानी के किस्से जन साधारण में बहुत बिख्यात है उल्लेखो से ज्ञात होता है की राजा बीरवल की गोस्वामी जी से बहुत घनिष्ठता अकवर के दरबार में आने से पहले हि कयाम हो चुकी थी इ गौड़ राजा रामचंद्र और रानी दुर्गावती से गोस्वामी जी के आत्मीय सम्बन्ध थे उन के माध्यम से आप गोस्वामी जी के संपर्क में आये और उन के सिस्य हो गए अस्त छाप के कवी छित स्वामी इन के मथुरा के पुरोहित भी थे
गडा नरेश रानी ~
राजा रामचंद्र और रानी दुर्गावती परम भगवती जिव थे पुष्टि की भाकि मार्ग के ये सेवक बहुत कल तक गोकुल में रहे न्होंने गोस्वामी जी को १०८ गावं दान में दिए थे समय समय पर पुस्ती मार्ग के विस्तार में भी अमूल्य सहयोग किया
पुष्टि मार्ग के सेव्य स्वरुप
पुष्टि मार्ग में बल्लभा चार्य और उनके आत्मज गोस्वामी जी आदि के द्वारा सेवित स्वरूपों को निधि कहा जाता है ये निधिया किस किस को कब प्राप्त हुयी
कहा से प्राप्त हुयी एक आम धारणा के अनुसार श्री कृष्ण द्वरा ब्रज में जो जो लीलाये की वह श्री विग्रह उन्ही लीला स्थलों पर मूर्ति मान होकर विराजमान थे जिनको भक्तो के द्वारा सेवा को प्राप्त कर लिया अत यह सछात कृष्ण हि मूर्ति मान है किन्तु इन का एक इतिहाश भी है बल्लभ सम्प्रदाय में सर्वप्रथम श्री नाथ जी और गोकुल में नवनीत प्रिया (लालन) की सेवा आरम्भ हुयी श्रीनाथ जी के सम्बन्ध में हम आप को गिरिराज जी जतीपुरा आन्योर के विवरण में सविस्तार लिखेंगे लालन के विषय में आप उनके प्राकट्य स्थल रमण घाट का वर्तमान छाया चित्र पूर्ण आनंद कथा आप आपकी साईट के गोकुल चरित्र में प्राप्त कर सकते है इन के अतिरिक्त अन्य स्वरूपों का संछिप्त विवरण इस प्रकार है जिन की सेवा का अधिकार सात स्वरूप श्री गोस्वामी जी के सात पुत्रो को प्राप्त था अब उनके वंसज इन निधियो की सेवा के अधिकारी है
----श्री द्वारिका धीश जी
(वर्तमान काकरोली में विराजमान )
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पुत्रो के नाम | सेव्य स्वरूप |
कहा से प्राप्त | किसके ठाकुर विशेष विवरण----------------------------------------------------------------------------------------------------------------- (१) श्री गिरिधर जी | श्री मथुरेश जी | करनावल गावं | पदमनाभ दास | वर्तमान में कोटा में विराजमान
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(३) श्री बाल कृष्ण जी | श्री द्वारिकाधीश जी | कन्नोज | दामोदर दास से प्राप्त | राजा अम्बरीश के सेव्य
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(४) श्री गोकुल नाथ जी | श्री गोकुल नाथ जी | आचर्य जी की सुसराल से | इंद्र द्वारा सेवित | गोकुल में विराज मान
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द्वारा सेवित सेवित वर्तमान में कमवन में विराजमान
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(६) श्री यदुनाथ जी | श्री बालकृष्ण, | यमुना जी से प्राप्त | गुसाई जी के ठाकुर | सूरत गुजरात में विराज मान
| श्री कल्याण राय जी | मानिकपुर गावं में प्राप्त | बाबा वेणु के ठाकुर | बड़ोदा गुजरात में विराजमान
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(७) श्री घनश्याम जी | श्री मदन मोहन जी | श्री बल्लभा चार्य जी [फे | यज्ञ नारायण भट्ट के ठाकुर | वर्तमान में कामवन
माता के सेवित में विराजमान
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श्री बिठ्ठल नाथ जी (वर्तमान नाथद्वारा में विराजमान )
श्री मथुरा धीश जी (वर्तमान कोटा में विराजमान )

(१) श्री मथुरेश जी (२) श्री विठ्ठल नाथ जी (३) श्री द्वारिका धीश जी (४) श्री गोकुल नाथ जी (५) श्री गोकुल चंद्रमा जी (६) श्री बाल कृष्ण जी (७) मदन मोहन जी (८) श्री नवनीत प्रिया जी (९) श्री नटवर लाल
अपने सातों पुत्रो को गुसाई जी ने जव इन निधियो की सेवा प्रदान की तव उनके छठे पुत्र को बाल कृष्ण जी के बिग्रह को देना चाहा किन्तु उन्होंने उसे लेने से इंकार दिया तब श्री बाल कृष्ण जी को उनके तृतीय पुत्र बाल कृष्ण जी ने इनको अपने लिए माग लिया और छठे पुत्र यदुनाथ जी को श्री कल्याण राय जी को प्रदान कर दिया गया इस कारन यह बाल कृष्ण जी का विग्रह द्वारिका नाथ जी के साथ उनके अन्दिर में विराजे इस कारन गोकुल में इनके लिए विशेस मंदिर नहीं बनाया गया अन्य सभी सात निधियो का मंदिर गोकुल में है !
इन सातों स्वरूपों का बट्बारा संवत १६४० कार्तिक सुक्ल १ को हुआ और सभी का ब्रह्द छपन्न भोग हुआ जिसमे श्री नाथ जी भी विराज मान हुए
कुछ प्राचीन ग्रंथो से ज्ञात होता है की गोकुल में नवनीत प्रिया जी सहित १९ श्री विग्रह विराजमान थे
पुष्टि मार्ग की अन्य निधिया
श्री त्त्रिभंग राय जी ~ श्री महा प्रभु जी के सेव्य बड़ा गावं निवासी देवा कपूर द्वरा सेवा को प्राप्त अली खान के भवन निर्माण के समय नीव में से प्राप्त
श्री कल्याण राय जी ~ शेरगड़ में आप देवी के स्वरूप में विराजमान थे श्री बल्लभा चार्य जी ने स्वप्न पाकर प्रथम इनका कृष्ण विग्रह रूप श्रंगार किया ( नहीं तो बिचारे गोपी हि रहते हाहाहा और हो भी क्यों न यह शेरगड़ बरसना से अधिक दुरी पर नहीं है ) कल्याण राय नाम दिया बाब वेणु ,कृष्ण दास यादवेन्द्र दास ने सेवा की
लाडलेश जी~ शंकर भाई के सेव्य जो नवनीत प्रिय जी की रसोई में विराजमन थे
श्री वृन्दावन चन्द्र जी ~ यह भी वेस्नव सेवक के सेव्य थे जिनका नाम पुरषोत्तम ठाकर था यह विठ्ठल नाथ जी की तिवारी में विराज मान थे
मदन मोहन जी ~ राजा आसकरण के ठाकुर वर्तमान में मुंबई में विराज मान है राजा आसकरण के दूजे ठाकुर मोहन नागर जी भी थे जो वर्तमान में धोलका गुग्रत में विराज मान है इनके सहित निम्नाकित विग्रह गोकुल की शोभा थी ताज बीबी के ठाकुर ,प्रभु दास जलोटा के ठाकुर गोकुल में काका जी की गली स्थित काका जी के नोहरे में विराजते थे शुभ कारन लाल जी भोरी बहु जी के ठाकुर इनके श्री विग्रह पर जनेऊ का चिन्ह था शिंह नन्द की छ्त्त्रानी के ठाकुर जो गोकुल में लाल जी मंदिर में विराज मान थे यह दो स्वरुप थे दुशरे मदन मोहन लाल जी यह एक विरक्त के ठाकुर थे श्री मदन मोहन जी की एक श्री विग्रह नाथू जी के मंदिर में भी विराजमान थे यह गिरधर जी के सेव्य ग्वारिया ठाकुर भी के जाते थे श्री रघुनाथ जी के सेव्य दो स्वरुप महाप्रभु जी के मंदिर में विराजते थे मुकंद राय जी राम दास मुखिया जी के ठाकुर थे यह समस्त श्री विग्रह उस समय गोकुल की भव्यता में पूनम की चन्द्र किरणों के सामान चमकते थे !
सात स्वरूप के वितरण सै पहले संवत १६३७ माघ सुक्ल १० को गोकुल में सात मंदिरों के निर्माण का महूर्त होने का उल्लेख ग्रंथो से ज्ञात होता है
इनके निर्माण के पश्चात हि सातों निधियो को अपने अपने मंदिरों में विराजमान किया गया
श्री गोसाई जी का तिरोधान
अपने जीवन काल में गोसाई जी ने गोकुल के आध्यात्मिक बेभब को चरम पर पंहुचा दिया और गोकुल उस समय कृष्ण भक्ति का प्रधान केंद्र हो गया उनके जीवन काल में हिन्दू हि नहीं मुसलमान अली खान,रशखान आदि सम कालीन शभी राजा बादशाह अकवर साह्जाहा आदि सभी ने इन महा मानव की इछा का सम्मान किया और राजकीय फरमान जरी कर गोकुल में शांति मय बातावरण बनाये रखने किन्तु कल चक्र में यह आप श्री जाने के बाद उवनी उपद्रव सुरु हो गए संवत १६४४ की फागुन कृष्ण सप्तमी को इन महामानव ने गिरिराज तलहटी में अपने अराध्य गोवर्धन नाथ जी के श्री चरणों अर्पित कर दी कई अन्य विद्वानों ने आप का तिरोधान संवत १६४२ में भी माना है
अपने अंतिम समय में श्री गोसाई जी ने नवनीत प्रिय जी की निधि सहित अपने चतुर्थ कुमार श्री गोकुल नाथ जी को अपने सातवे पुत्र घनश्याम जी के हाथ सुपुर्द किया तत पश्चात गिरिराज पर पहुचे वहा अस्वथ होने पर श्री नाथ जी को गोकुल नाथ जी को सपुर्द कर उन्हे पुष्टिमार्ग के कुछ ग्रन्थ दिए अपने कंठ की माला पहनाई और अपनी पाग उनके मस्तक पर राखी भोजन कराकर उनको गोकुल विदा किया
वस्तुत श्री गोसाई जी श्री गोकुल नाथ जी पर बहुत स्नेह रखते थे और उन के सद गुणों से बहुत प्रभावित थे गुसाई जी पश्चात श्री गोकुल नाथ जी
ने यह सिद्ध भी किया गुसाई जी इन की प्रतिभा को पूर्व से हि परख लिया था
दुशरे दिन गोसाई जी ने शरीर पर तेल लगाया स्नान भोजन आदि से निवृत होकर दो पत्र लिखे और उनको अपनी गाधी ने निचे रख दिया जिनमे से एक में सभी पुत्रो को उपदेश सामायिक करतव्यो का उल्लेख था शोभा जी के कहने से श्री गिरधर जी ने वह पत्र देखे पहला फाड़ दिया दुशरे के अनुसार सारे कर्म किये इस प्रकार गोसाई जी की अंतिम बसियत सेष ना रह पाई
श्री गोसाई जी ने विवाह किये दूशरा विवाह गडा की महारानी दुर्गा वती के परामर्स से आप का हुआ आपको प्रथम पत्नी श्री रुक्मणि बहू जी से छह पुत्र तीन पुत्रिया दूसरी पत्नी श्री पद्मावती से एक रत्न की प्राप्ति हुई यह सतो बालक बड़े प्रतापी थे इन सभी ने गोकुल की आध्यात्मिक गरिमा को नित्य निरंतर उत्कर्ष दिया गोसाई जी सतो लालो का वर्णन इस प्रकार है ~
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क्रम नाम | जीवन काल | जन्म काल | संतति | पत्नी | विद्वता | व्यक्तित्व | सेव्य स्वरूप
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(१) श्री गिरधर जी | ८० वर्ष | सं. १५९७ | ३ पुत्र | भमिनी जी |शास्त्र | गौर वर्ण क्रस | श्री मथुरेश जी
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(२) श्री गोविन्द राय जी | ५१ वर्ष | सं. १६०१ | ४ पुत्र | रानी बहूजी | शास्त्र व्याकरण | स्थूल काया ऐश्वर्य | श्री विठ्ठल नाथ
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(३) श्री बल कृष्ण जी | ४४ वर्ष | सं. १६०४/०६ | ६ पुत्र | कमला बहूजी | वैद के ज्ञाता | श्याम वर्ण पुस्त सरीर | श्री द्वारिका धीश
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(४) श्री गोकुल नाथ जी | ८९ वर्ष | सं. १६०८ | ३ पुत्र | पारवती बहूजी | संस्कृत ओर व्रज भाषा | श्याम वर्ण यस्स्ववी | श्री गोकुल नाथ जी
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(५) श्री रघु नाथ जी | ४९ वर्ष | सं. १६११ | ५ पुत्र | जानकी बहूजी | व्याकरण उपपुराण | गौर वर्ण घुघराली अलके | श्री गोकुल चंद्रमा जी
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(६) श्री यदुनाथ जी | ४५ वर्ष | सं. १६१५ | ५ पुत्र | महारानी बहूजी | वैदिक विद्वान | रक्त वर्ण ज्ञानी | श्री बाल कृष्ण जी
परम तुष्ट श्री कल्याण राय जी
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(७) घन श्याम जी | ४१ वर्ष | सं. १६२८ | २ पुत्र | कृष्णावती वहूजी | भक्त | श्याम वर्ण पुष्ट सरीर वैराग्य प्रधान | श्री मदन मोहन जी
व्यक्तित्व
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श्री यदु नाथ जी प्रथम लाल जी
श्री गोसाई जी के लीला विस्तार (निधन) के उपरांत उनके तिलकायत पुत्र गिरिधर जी ने सभी भाइयो को अलग हो जाने को कहा इस प्रकार सवत १६४६ में वसंत पंचमी के दिन गोकुल नाथ जी अलग होकर श्री बिठ्ठल नाथ जी और श्री मदन मोहन जी के स्वरूपों को लेकर श्री गोसाई जी की बैठक में पधारे और आप सभी अलग होकर जन समुदाय को अपनी महान ज्ञान रूपी गंगा प्रवचन से तृप्त करने लगे श्री बाल कृष्ण जी श्री द्वारिका नाथ जी को लेकर इन्ही में आ मिले किन्तु उन की बहूजी के यह कहने पर की आप छोटे भाई पर बोझ न बनिए पाच महा साथ रह कर अलग हो गए श्री यदु नाथ जी भी १८ महा तक गोकुल नाथ जी के पास हि रहे इस प्रकार गोकुलनाथ जी यदुनाथ जी घनश्याम जी बाल कृष्ण जी गोविंदस राय जी पचो भाई सवत १६४६ में एक साथ रहे सवसे बड़े भाई श्री गिरिधर जी के जीवन काल में श्री गोकुल नाथ जी को छोड़ कर सभी भाइयो देहावसान हो गया
मंदिर निर्माण
श्री नवनीत प्रिय जी का मंदिर ~
सर्व प्रथम गोकुल में नवनीत प्रिय जी के मंदिर का निर्माण हुआ क्योकि आठ सखाओ में से कई का यह दिच्छा स्थल रहा अपने जीवन के अंतिम पालो में विष्णु दास छिपा नवनीत प्रिय जी के ड्योडी बान रहे यादवेन्द्र दास प्रजापति ने इस मंदिर की नीव एक हि रत में खोद डाली थी वर्तमान में इस मंदिर को राजा ठाकुर कहा जाता है आज भी यहाँ सतो स्वरूपों के विराजने के स्थान आलो के रूप में बिधमान है नाथ द्वारा टेम्पल बोर्ड के आधीन इस मंदिर में नव निर्माड के बाद अपनी भव्यता और पुष्टि मनोरथो के दर्शन से अपने राजा ठाकुर के भक्तो को नित्य दर्शन को लालायित करता है ........... समय में श्री तिलकायत राज इन्द्रदमन जी ( राकेश बाबा ) नाथद्वारा से नवनीत प्रिय जी को ब्रज भ्रमण को ब्रज में लाये तो नवनीत लाल यहाँ ३ दिन तक विराजे उन दिनों की शोभा के बारे में क्या लिखे ये समझ नहीं आता वह अलोकिक मनोरथ भक्तो की अपार भीड़ गोकुल का वह सोंदर्य

श्री द्वारिका नाथ जी का मंदिर ~
जैसा की द्वारकेश जी रचित नामामृत में वर्णित है "गोकुले यमुना तीरे प्रसद्थ्स्गुरुम '" तृतीय पीठ के गुरु गोस्वामी द्वारिकेश जी उपनाम वागधिश लाल जी तथा केसरिया लाल जी पुनह नए रूप में सवत १६४७ ने द्वारिका नाथ जी के मंदिर का निर्माण कराया इसी मंदिर में श्री बल्लभा चार्य जी की सय्या बैठक भी है उचित प्रकार देख रेख होने के कारन वर्तमान में भी यहाँ इसका प्राचीन स्वरूप विधमान है एक समय इस मंदिर में डाका भी पड़ा था जिसमे महावन के कुछ लोग भी सामिल थे
श्री मथुरेश जी का मंदिर ~

श्री गोकुल चन्द्रमा जी का मंदिर ~
श्री गोकुल चन्द्रमा जी के निज मंदिर का भाग तो आज भी सुरछित है किन्तु उस में किराये दर ने नन्द भवन बना दिया है अत वर्तमान में यहाँ मर्यादा की सेवा होती है उसके शेष बड़े भाग में नव जय गोपाल लाल जी का मंदिर बान गया है यहाँ एक श्री बल्लभा चर्या जी का मंदिर भी था यह अब नाम मात्र शेष है
श्री बिठ्ठल नाथ जी ,मदन मोहन जी .कल्याण राय जी मंदिर ~
यह तीनो प्राचीन मंदिर सिह पोर स्थित घेरे में में है श्री हरिराय महा प्रभु जी की बैठक भी यहाँ है अब यहाँ इनके अबशेष हि मात्र है अब इन सभी में गोकुल निवासिओ का आवाश है
श्री गोकुल नाथ जी का मंदिर ~


पुष्टि मार्गीय सेवा प्रणाली
मंदिरों की दर्शन झाकिया
रत्येक मंदिर में सुबह साय क्रम से चार चार झाकिया होती थी प्रथम मंगला आरती ,श्रंगार,ग्वाल, ( केवल गोकुल नाथ जी मंदिर मै) राजभोग
फिर अनोसर ( विश्राम) साय को उत्थापन , भोग , संध्या आरती सयन होता था क्रमशः इसका समय सुबह ६ से १० से अनोसर साय ४ से ६ के बाद श्री ठाकर जी का सयन होता था कुछ मंदिरों में यह क्रम अब भी बाकी है और दर्शन खुलते है कुछ में अब सुबह मंगला हि होती है बाकी सभी अन्दर हि अन्दर हो जाता है आम जन को दर्शन नहीं होता किन्तु एक बात जो यहाँ है की आज भी किशी उत्सव के दर्शन के खुलते समय मंदिर के तरफ दर्शनों के अभिलाषीओ की भीड़ को लगभग भागते हुए से दीखते है की एक झलक पाले और धन्य हो जाये और असल में यह साईट भी उन्ही लोगो को समर्पित है जो भक्त है हमारा उनको प्रणाम है इन दर्शन की झाकियों के प्रयोजन भोग प्रणाली साज सज्जा के विषय में जानने के लिए पुष्टि प्रकाश नामक ग्रन्थ से पर्याप्त जानकारी मिल जाती है अन्य ग्रंथो में भी विवरण मिलते है इस सम्प्रदाय मै सेवा का बहुत हि सुछम क्रम परंपरा है और निर्वाह भी अनिबार्य है
श्री ठाकुर जी के श्रंगार और साज सज्जा के उपकरण
ठाकुर जी के साज श्रंगार की बस्तुओ की सूचि बहुत लम्बी है संछेप में साल के ३६० दिनों में प्रत्येक दिन के लिए श्रंगार ऋतू काल के अनुशार निछित होता है रत्ना जडित गहनों से लेकर साटन,छीट,डोरिया, मखमल , आदि के रंग विरेंगे बहु मूल्य कपड़ो से निर्मित साज और बागा , काछनी, मल्ल्कछ, जामा, सूथन,पटिका पीताम्बर आदि सहित मस्तक पर धरने के लिए पाग, स्वफा , मुकट ,मोर चन्द्रिका, कुलह, तुर्रा कलंगी इत्यादि साथ हि जडाऊ बाजुबंध, नथ,चिवुक, कुंडल कर्णफूल तिलक करधनी सरपेच, नुपुर आदि से श्री ठाकुर जी का श्रंगार होता है
विराजमान होने के लिए चादी का सिहासन संगामाची ( सिहासन के आगे लगाने वाला लकड़ी से निर्मित पटल जिस पर श्री ठाकुर जी की हटी डट या चादी से निर्मित चोपड़ रखी जाती है सिहाशन खंड पाट तथा चोकियो पर समरंगी वस्त्र साज बिछे होते है सोने चादी या हाती दात की दोछ्डिया खंड पाट पर खड़ी की जाती बीच में चादी या सोने की आरसी (दर्पण) रखा जाता है सिहासन पर पान बीड़ा रखने के कलात्मक डब्बे सिहासन के बाजु में चादी के पडगो ( आधार या स्टैंड ) पर चादी या सोने की झारी रखी जाती है ग्रीष्म काल में श्री ठाकुर जी के सिहासन के पास चादी के थाल में जल भरकर कच्छ मछ सुगंधी पुष्प आदि रखकर रखा जाता है सामने फुआरा चलता है संध्या काल में बहार चोंक में चादी के नाना प्रकार के रंगीन फुआरे चलते है तगर मोगरा चमेली के पुष्पों से निर्मित मालाये धरायी जाती है जिससे ठाकुर जी को अधिक से अधिक सीतलता प्राप्त हो सके शीत काल में दहकते कोयलों की एक चादी की सिगड़ी रखी जाती है श्रंगार में अधिक तम मानिक आदि गर्म तासीर वाले रत्नों के आभुसन धराये जाते है वर्तमान में भी यही प्रथा अधिकतर मंदिरों में जारी है मखमल पर सोने के काम वाली जाली से बुनी हुयी बिभिन्न सेलियो में हस्त चित्र निर्मित पिछ्वयिया सिहासन के पीछे लगायी जाती है इन में से कुछ तो बहुत हि सुंदर और कलात्मक है चादी सोने के खिलोने सम्मुख रके जाते है जव भी कोई विशेष पर्व और वार्षिकी जयंतिया उत्सवो मनोरथो में जो कलात्मकता होती है वो तो अद्भुद होती है उसका विवरण लिख पाना सायद संभब नहीं
मंदिर के सेवक गण ~
मंदिरों के सेवक गणों में मुखिया जी प्रधान सेवा और श्रंगार करता होते है भीतरिया जी नाना प्रकार की सामिग्री में निपुड रसोईया होते है जो श्री ठाकुर जी के भोग का निर्माण करते है दूध धरिया जी दूध की सामिग्री का निर्माण करते है जल धरिया जल सेवा करने वाला साग धरिया सगाहर सामिग्री की व्यस्था करते है बड़ी मात्र में प्रसाद बनने पर काटने की व्यस्था करनी होती है इस लिए सेवा भाबी वैष्णवों को मंदिर में अपरस कराया जाता है जिस की जहा अब्स्यकता हो से कार्य होता है बड़े बड़े लछमी बान धन बान भी याह कर गोर्वान्दित होते है कई बार में भी मेरे वैष्णव दोस्त कुमार चंद्रानी के साथ साग घर की और फुल घर की सेवा कर चूका जो सब के लिए करने वाला है उस के लिए कुछ करके कितना आनंद मिलता है आप सभी भक्त जन जानते है हमारे लिए वो प्रभु हम उनके सेवक हि है वे मालिक हम नोकर मंदिर के अन्य सेवको में पान धरिया जी फुल धरिया भंडारी जी कच्ची सामिग्री के व्यवस्था को और समाधानी जी प्रसाद को भक्तो को पंहुचा कर दान एकत्रित करते है रोकड़ डिया, झापटिया दर्शनों में आने वाली भीड़ को नियंत्रण करता होते है किर्तनिया जी झेलानिया जी (सह किर्तनिया जी ) जिनको परिवाव जी कहा जाता है अधिकारी जी (मुख्य ब्यास्थापक) छड़ी दार, जमा दार , पहरेदार ( सिपाई) ग्वारिया आदि मंदिर में अल्प वेतन में कार्य करते है या नेग पर देनिक भोग आदि पर नियुक्त किया जाता था उस महा प्रसाद पर भी उनका जीवन यापन हो जाता था वर्तमान में बहुत परिवर्तन हो चूका है
दैनिक भोग सामिग्री ~
भोग सामिग्री में प्रात साय माखन मिश्री दूध मलाई ,लोटी, लिटी खीर सीकरन, दल भात रोटी कड़ी साग दही पलनिया मूग लड्डू मठरी पूरी थापडी खरखरी सयन पूरी मेवा फल आदि प्रात कालीन भोग कच्ची रसोई साय कालीन पक्की रसोही के रूप में होता है
सेवा के बिभिन्न बिभाग और स्थल ~
निज मंदिर,जग मोहन सैया मंदिर,दोल तिवारी, तोशाखाना,(जहा सेवा के कीमती साजो सामान रखे जाते है ) बाल भोग (पक्की रसोई बनाने का स्थान ) रसोई जल घड़ा ,भंडार प्रसादी भंडार ,फुल घर साग धर दूध घर पन घर ड्योडी नगद खाना गौशाला पेडी या नामा ( वही खता बिभाग ) आदि सेवा के बिभिन्न बिभाग होते थे
ऋतू अनुकूल सेवा प्रणाली के अतिरिक्त उसके अनुकूल फूल मण्डली कभी यमुना जी में नोक विहार फूलो का श्रंगार फुहरो की छटा ज्येष्ठविशेष
स्नान यात्रा रथ यात्रा का आयोजन श्रावण में यमुना जी के घटो पर बगीचे में काच, सोने ,चादी ,मोती, सीप, फूल ,पत्तियों आदि नाना प्रकार से निर्मित प्रभु के झूलो की शोभा हदों मास में सोने चादी के पालनो में श्री ठाकुर जी का झुलना मंदिरों में नन्द महोसव का साकार होना धदी कंदा का लुटाना कभी पानी के ऊपर अथवा चोंक में तरह तरह की झाकियों की शोभा कभी कभी दान लीला की शोभा दिवाली पर दीप दान हत्री गोवर्धन पूजा अन्नकूट का आयोजन छपन्न भोग कुँवडो के भव्य दर्शन रंग गुलाल की छटा लीलाओ स्वांगो का प्रदर्शन धमार रसियो का गायन मंदिरों से निकलती आकर्षक सवारिया सभी मंदिरों मर एकसाथ मनोरथ होने पर अभी के अनुआयी भी एकसाथ हि आते आज इस मंदी की सवारी आरही है कल उनकी यह भाब्ता केवल महशुश हि की जा सकती है
राज दरवार से भी कही अधिक संम्पन्न थे यहाँ के मंदिर में सोने चादी का प्रययोग यहाँ ताम्बे और पीतल की तरह होता था बड़े बड़े हिंडोले,पालने सुखपाल सिहासन सांगामच चादी के फब्बारे रथ हटरिया विशाल भोग पत्र खिलोने झ्कियो में प्रयुक्त होने वाली बिभिन्न कीमती वस्तुये चादी सोने सीप हाती दात काच हीरो पन्नो के द्वरा निर्मित थी भगवन की सवारी के साथ चलने वाली घोसे,चन्द्र मुखी ,सूरज मुखी के चिन्ह आदि के दंड झंडियो की डंडिया हाती की झूल घोड़ो के साज मोर छल, छात्र ,चवर और हात से झलने वाले पंखो की डंडिया पिचकारिया सभी चादी या सोने या किसी कीमती रत्ना से सुशोभित होते थे दुर्लभ और कलात्मक बस्तुओ के संग्रहालय स्वरूप थे यह मंदिर यहाँ प्राचीन कला शेली में निर्मित पिछ्बायिया ( ठाकुर जी के सिहासन के पीछे बधने वाला कलात्मक कपडा ) चित्र मय दूरलभ पांडू लिपिया विशाल ग्रंथागार यहाँ थे चित्र कारो लिपि कारो और कीर्तन कारो का अपना समुदाय भी था
गोस्वामी श्री गोकुल नाथ और गोकुल
गुसाई जी के चतुर्थ कुमार श्री गोकुल नाथ अपने अन्य भाइयो से कही अधिक प्रतापी महापुसुश हुये आप ने गोकुल के बैभब और गौरव में अभूतपूर्व वृधि की और अपने नामनोरूप गोकुल से अगाध प्रेम और निष्ठा प्रदर्शित की वर्तमान में भी भगवान गोकुल नाथ जी का चतुर्थ पीठ हि एक ऐसा पीठ है जिसने गोकुल का त्याग नहीं किया है आज भी वह गोकुल का गौरव`और है
जन्म सिच्छा दिच्छा और विवाह ~
आप श्री का जन्म सवत १६०८ के मार्गसिर्ष सतमी को अड़ेल में हुआ अछारम्भ सवत १६१४ में तथा यज्ञोपवित सवत १६१५ चेत्र सुदी छठ को हुआ सोलह वर्ष की आयु में सवत १६२४ में आप का विवाह श्री वेणु भट्ट की पुत्री पारवती जी के साथ हुआ २० वर्ष की आयु में आप गोकुल आये पंडित शिवदत्त जी से मथुरा में सस्त्र अध्यन किया आप विनोद प्रिय स्वभाव और उत्त्मौत्तम वार्ता कार थे आप की कही ८४ और २५२ वैष्णव की बार्ता हिंदी गध साहित्य में एतिहाशिक रूप प्रस्तुत करती है आप प्रति रात्रि बर्ता किया करते थे क्योकि सम्प्रदाय के रहश्य को आम जन भी समझ सके एक बार एक हि प्रसंग को दुबारा कहने पर एक वैष्णव के द्वारा टोके जाने पर आप ने प्रसंग कहना कम कर दिया आप को घुड़सवारी और वधो में सारंगी बहुत प्रिय थी एक समय आप ठाकुर गोकुल नाथ को अन्नकूट अरोगाने को ८४ घोड़ो की बग्गी में सवारी सहित गोवर्धन जतीपुरा ले गये थे अब से कुछ वर्ष पहले तक श्री गोकुल नाथ जी ठाकुर अन्नकूट महोत्सव के लिए जतीपुरा पधारते थे पहले जतीपुरा के ब्रजवासी कंधे पर सुखपाल ( डोला ) लेकर श्री ठाकुर गोकुल नाथ जी के श्री विग्रह को गोकुल से स्वयं पधराने आते थे सबारी की शोभा को भरतपुर के महाराजा अपना वस्रुरी वेन्ड ओ उत्सव में भेजा करते थे कुछ गोकुल के व्रजवासी बताते है की उस समय मार्ग में रेलवे आदि सभी को श्री ठाकुर जी को मार्ग देने को कुछ छड़ो को रोक दिया जाता था घोड़े हाती रथ बग्गी हजारो हजार भक्त गण श्री ठाकुर जी के साथ आनंद मग्न होकर नाचते गाते साथ चलते थे अद्भुद द्रश्य होता था यह सवत २०५६ सन २००० से इस प्रथा को पूर्ण तय बंद कर दिया गया है सन २००० से पहले वर्तमान पीठ आचर्य श्री सुरेश बाबा ठाकुर जी को जतीपुरा पधराया करते थे मंदिर से गोकुल नाथ जी से बस स्टैंड स्थित गणेश जी मंदिर तक गाजे वाजे सहनाई हाती घोड़ो बग्गी इस अवसर पर हजारो श्रद्धालु गोकुल में आते थे जो सज धज कर श्री ठाकुर के साथ चलते थे बस स्टैंड से रथ रूपी बस के द्वारा जतीपुरा ले जाया जाता था जतीपुरा का विवरण हम गिरिराज जतीपुरा के प्रसंग में लिख रहे है किन्तु इस प्रथा के बंद हो जाने से गोकुल और जतीपुरा के ब्रजवासी बहुत ठगा मह्सुश करते है और ठाकुर गोकुल नाथ से मन हि मन प्राथना की यह शोभा फिर शीघ्रता से सुरु हो और वह प्राथन हि कर सकते है कहते है की पुस्ती मार्ग ने ब्रज उनको इतना दिया है की वह किशी प्रकार की सिकायत नहीं कर सकते है यह सब बताते हुए वे मायूस दिखाई पड़ते है और बताते है की पूर्व कल में इसी चतुर्थ पीठ की गोस्वमिनी चाद्रवाली बहूजी महाराज इस प्रथा के अधिकार के लिए लन्दन कौसिलिंग तक मुकदमा लड़ा था क्योकि तृतीय पीठ के भगवान द्वारिका धीश जी भी अन्नकूट आरोगने गिरिराज जी पधारते थे
श्री गोकुल नाथजी की संतति ~
आपके तीन पुत्र श्री गोपाल जी ,श्री बिठ्ठल राय जी,श्री ब्रजौत्सव जी पाच पुत्रिया श्री रोहणी,पदमा,सत्यभामा,रुक्मणि तथा राधा इनका दूशरा नाम महालछ्मी भी था प्रथम पुत्र गोपाल जी का जन्म सवत १६४३ पौस सुदी १४ को हुआ इस अवसर पर गोविन्द स्वामी ने गोकुल नाथ जी की आज्ञा से " तुम ब्रज रानी के लाला" पद गाया गोपाल जी का यज्ञोपवित गोकुल में सवत १६४९ में तथा विवाह सवत १६५५ में परुष राम भट्ट जी की कन्या रोहणी से तथा दूशरा विवाह गोकुल में हि बलभद्र भट्ट जी की कन्या गोपदेवी जी से हुआ बिठ्ठल राय जी का विवाह भी गोकुल में वशुदेव जी भट्ट जी की कन्या से हुआ इन के भी दो विवाह हुए बताते है इस सभी उत्सबो के प्रसंगों ने भी गोकुल को बहुत कुछ दिया क्योकि गोकुल के नाथ के सव उत्सव गोकुल के अपने हि तो थे
श्री गोकुल नाथ जी के सिस्य गण ~
वेसे तो गोकुल नाथजी महाराज के असंख्य सिष्य हुये किन्तु इन में से ७८ बहुत विसिश्ठ थे जिन्होने आप श्री के देहवासन का समाचार पाकर स्वयं भी देह त्याग कर दिया था इनके अतिरिक्त भरूच के मोहन भाई और कपडवंज की रतनबाई जिनको वेनजीराज कहा जाता था भी मुख्य थे
पंथ के अनुआयी ~
श्री गोकुल नाथ जी के सेवक दो प्रकार के है (१) भररुची ( भरुची ) (२) निमडिया भरुची ( भड़ोच निवासी ) वैष्णव गोकुल नाथ जी के सिबाय किसी और को मान्यता नहीं देते है अन्य छेह पीठो के किसी भी वैष्णवों से सम्बन्ध नहीं रखते है अभिबादन में परस्पर जय जय श्री गोकुलेश सब्द का उच्चरण करते है निमडिया वैष्णव अन्य पीठो के वैष्णवों से परहेज नहीं करते और जय श्री कृष्ण कहकर अभिबादन करने में संकोच नहीं करते
भरुची वैष्णवों की एक बस्ती गोकुल के समीप हि यमुना किनारे बल्लभ घाट पर गाधी पूरा नाम से स्थित है जो गोकुल नाथ जी के समय श्री पुर कहलाती थी यहाँ उनके कुछ स्मृति चिन्ह आज भी सुरछित बताये जाते है इस बस्ती की बिधिबत स्थापना सवत के श्रावण माश में हुयी थी
बैठके ~
आप की कुल १३ वैठके है १ गोकुल में गोकुल नाथ जी के मंदिर में २ वृन्दावन में ३ श्री राधा कुण्ड में ४ चन्द्र सरोवर पारसोली में ५ जतीपुरा गोकुल नाथ मंदिर में ६ सुरभि कुण्ड पर ७ भरूच में ८ सोरो में ९ गोधरा में १० कश्मीर में ११ कपडवंज गुजरात १२ अड़ेल में १३ अहमदाबाद असरबा में
माला तिलक रछा~
सम्प्रदाय में एक कहावत आज भी प्रसिद्द है " गोकुल नाथ बड़े महाराज तिलक माला की राखी लाज" उस समय जहागीर का सासन काल था इतिहाश में जहागीर की न्याय प्रियता का उल्लेख विशेष रूप से किया है किन्तु चिद्रूप नामक वैष्णव बिरोधी संन्यासी के बह्काबे में आकर वेष्णवो
को माला तिलक धारण न करने का सही फरमान जरी किया श्री गोकुल नाथ जी ने हर कष्ट सहकर इसका बिरोध किया अंततः सही आदेश बपश लिया गया यह घटना सम्प्रदाय के इतिहाश में मलोधार के नाम से प्रसिद्ध है जिसका अनेक कवियों और लेखको के द्वारा सविस्तार वर्णन किया गया है
जहागीर से श्री गोकुल नाथ जी की भेट ~
जहागीर आगरा से कश्मीर की और चला तो पहले करनावल में ठहरा वहा से महावन होते हुये रावनकोट में डेरा डाला और फिर मथुरा उतरा इसी समय गोकुल नाथ जी को उसने मथुरा बुलबाया आप जव वहा पहुचे तब चाद्रूप और जहागीर अन्दर वार्तालाप कर रहे थे गोकुल नाथ जी बहार फोजदार सेरखान और सह्जादा खुर्रम के साथ धरम चर्चा करते रहे भेट होने पर सन्यासी ने छड़ी से बादसाह को श्री गोकुल नाथ जी की माला उतरने को कहा बादसाह चिंतित हुआ क्योकि उसके पूर्वजो ने श्री गोस्वामी बिठ्ठल नाथ जी को पूरा सन्मान दिया था इस पर सन्यासी ने कुपित होकर बादसाह से कहा की तुमको ऐसा करना हि होगा जब वेगम नूरमहल को यह ज्ञात हुआ तो उसने बादसाह पर क्रोध किया इस पर बादसाह सहमा और गोकुल नाथ जी के साथ कोई दूर व्यवहार नहीं कीया किन्तु उसका आदेश तो जरी हो चूका था जो जरी हि रहा मथुरा में कंठी माला की दुकाने बंद हो गयी और व्यापारी गोकुल आकर कंठी माला बेचने लगे यहाँ भी यदा कदा सरकारी कर्मचारी आ आ कर वैष्णवों
को भयभीत करने लगे आश्चर्य की यह कर्मचारी हिन्दू थे इससे यह स्पस्ट होता है किसी की दुस्ट्ता के पीछे कोई धर्म नहीं होता
एक बार आगरा का फोजदार बंशगोपाल गोकुल आया तो दंभ से चूर था और चापलूसी चाहता था अभिमान की[फे तुस्टी न होने पर खिसिया कर महावन चला गया और सेना तेयार कर गोकुल को घेरने का विचार करने लगा उस समय महावन का हाकिम गदाधर था उसने गोकुल नाथ का प्रताप समझाया तव माना इसके बाद सिकदर सारंग और कोतवाल उदयराम गोकुल आये और वार्ता करते करते उनके एक प्यादे ने ( सिपाही ) दामोदर में सही नामक वैष्णव की कंठी तोड़ने का प्रयास किया बचाव करने में उस वैष्णव की धोती सिपाही के हाथ में रह गयी माला न टूट पाई
इस प्रकार की घटनाओ के कारन श्री गोकुल नाथजी को माला का यह अपमान सहन न हुआ बहुत दुखित होकर उन्होने बादसाह से मिलने का निश्चय किया उस समय बादसाह कश्मीर में था
श्री गोकुल नाथ जी की कश्मीर यात्रा ~
कश्मीर की यात्रा करते समय आप की उम्र ७० वर्ष थी किन्तु धर्मरछा के लिए बादसाह से भेट आबश्यक था उसके दरवारी आसफ का से गोकुल नाथ जी का प्रेम व्यवहार था अत पत्राचार हुआ और सवत १६७७ में आप को कश्मीर बुलाया गया श्री गोकुलनाथ जी श्री गोकुलेह की माला रछन के लिए आप ने गोकुल से साडे चार सो कोस की कश्मीर की यात्रा की उस समय गोकुल नाथ जी के साथ ५०० वैष्णव भी थे उस समय राज कर्मचारियो ने वैष्णवों को बहुत प्रताड़ित किया लेकिन उन्होने अपने स्वामी का संग नहीं छोड़ा
कश्मीर पहुच कर आप ने स्वधर्म का प्रतिपादन किया वेदोक्त प्रमाणों से माला तिलक के महत्व की पुश्टी की और उससे अपना आदेश वापस लेने का आग्रह किया बादसाह उनके तर्कों से प्रभावित तो हुआ किन्तु नकी त्याग भाबना की परीछा के लिए उनसे कहा की आप गोकुल या कठि एक का त्याग कर दो श्री गोकुल नाथ ने गोकुल का त्याग स्वीकार्य कर लिया और सोरो चले गये सभी गोकुल वासी भी उनके साथ हि चले गए इस प्रकार गोकुल उजाड़ हो गया
बहुत समय के बाद बादसाह यमुना में विहार करता हुआ गोकुल के पास से निकला तो उजाड़ नगर को देखकर सेवको से पूछा की यह गावं कोन सा है तब उसे बताया गया की यह गोकुल है और आप हि के आदेश से गोकुल नाथजी इस को त्याग गए है इसी से यह वीरान हो गया है तो बादसाह को बहुत पश्चताप हुआ तब उसने गोकुल नाथ जी को गोकुल वापस आने का आदेश जरी किया और गोगुल नाथ जी पुनः गोकुल पधारे
और गोकुल में फिर से चहल पहल हो गयी सांप्रदायिक अभिलेखों से ज्ञात होता है की आप सवत १६७७ के फागुन वदी चोथ को गोकुल वापस पधारे इस प्रकार गोकुल उजड़कर फिर श्री गोकुल नाथ जी की छत्र छाया में वस् गया

गोकुल में पुष्टि मार्गीय आचार्यो की कुल १२ बैठके है बैठकों से अभिप्राय उन स्थानों से है जहा आप नित्य साधना किया करते थे एक बैठक अनन्य सेवक दामोदर दास जी हरसानी की भी है विवरण इस प्रकार है ~
श्री महाप्रभु जी की बैठक गोविन्द घाट पर छोकर के वृछ तले इसको प्रथम बैठक भी कहा जाता है
श्री महाप्रभु जी की बड़ी बैठक द्वारिका धीश जी मंदिर के घेरे में यहाँ नवनीत लाल को पलना झुलाया गाया था
श्री महाप्रभु जी की सय्या बैठक यह द्वारिका धीश मंदिर में स्थित है

श्री गोसाई जी की बैठक यह गोकुल नाथ जी के मंदिर में स्थित है
श्री गोसाई जी की बैठक यह ठकुरानी गोविन्द घाट पर स्थित है
श्री बड़े गिरधर जी की बैठक यह मथुरेश जी के प्राचीन मंदिर में स्थित है
श्री गोकुल नाथ जी की बैठक यह गोकुल नाथ जी के मंदिर में स्थित है
श्री रघु नाथ जी की बैठक यह राजा ठाकुर के मंदिर के पीछे स्थित है
श्री घन श्याम जी की बैठक यह सिंह पोर के घेरे में कल्याण राय जी के मंदिर के समीप स्थित है
श्री हरिराय जी की बैठक श्री बिठ्ठल नाथ जी और मदन मोहन जी के मंदिरों क्र घेरे के प्रवेश दार के अंदर स्थित है श्री गोपेन्द्र लाल जी की बैठक राम लीला स्थल के मार्ग में स्थित है
श्री दामोदर दास हरसानी की बैठक ठकुरानी घाट के ऊपर नन्द भवन के मार्ग में स्थित है

श्री हरिराय जी ~
बल्लभ कुल में उस समय ऐसे ऐसे आचार्य हुए जिन्होने दिन दिन गोकुल कै भेभब और गौरव की ब्रधि की ऐसे हि एक आचार्य हुए जिनको महामानव माना गया और महाप्रभु कहा गया वो थे द्वितीय पीठ के हरी राय जी आप श्री का जन्म सवत १६४७ भाद्रपद पंचमी को हुआ आप उच्च कोटि के विद्वान थे और आपने १२० वर्ष की दीर्घ आयु प्राप्त की आपने १६९ ग्रन्थ संस्कृत में ५२ ग्रन्थ ब्रज भाषा में लिखे है गोकुल में आप की बैठक है श्री गोकुल नाथ जी आप के दिच्छा गुरु थे एक नियम के अनुशार इनके कृत ४१ सिच्छा पत्रों को सुनकर वैष्णव गन सयन किया करते थे
श्री हरिराय जी ने ब्रज भाषा गध को स्वर्णिम युग में पहुचाया सम्प्रदाय के श्री विग्रह ब्रज छोड़ कर अन्यत्र प्रस्थान करेगे यह भाबिस्य बनी आपने हि की थी जो कालांतर में सत्य हुई आप ८० वर्ष तक की आयु में गोकुल में रहे
गोकुल सावली डाकोर जम्बू जैसलमेर और नाथद्वारा में आपकी बैठके बिधमान है आप के चार पुत्र हुए १ गोविन्द राय २ बिठ्ठल राय ३ छोटाजी
४ गोराजी हुए इन सब का आसमयिक देहवाशन हो गया जिस से बंस परंपरा समाप्त हो गयी तब बहूजी महाराज ने प्रथम पीठ के दामोदर को गोद लिया जो इनके उत्तराधिकारी हुए
श्री मुरली धर जी ~ ( सवत १६३०)
आप प्रथम गृह के आचर्य गिरधारी जी ज्येष्ठ पुत्र थे आप अकवर के दरवारी थे कुशल मरदंग बादक थे ताम्र पत्र प्राप्त थे
श्री बिठ्ठल राय जी ~ ( सवत १६५७ )
प्रथम गृह के गिरधर जी के दितीय पुत्र दामोदर जी के पुत्र थे यह परम प्रतापी धर्मं चार्य थे शाहजाहा ने जिस समय मंदिरों के निर्माण पर रोक लगाई थी उसके कुछ समय बाद उसने फरमान जरी कर आप को गोकुल की जमीदारी की माफ़ी वहा के मंदिरों को व्यय के लिए प्रदान की दारासिकोह ने भी आप को कई सुबिधाये प्रदान की और सहजहाँ के उच्च पदा अधिकारी इसहाक आजम खान ने सवत १७०३ ने इनको गोकुल के हात बाज़ार में इन को कर लगाने और वसूल करने के अधिकार दिए
श्री गोपाल लाल जी ~
आप पंचम पिठाधिस्वर श्री रघु नाथ जी के दितीय पुत्र थे इन्होने अपना प्रथक पंथ चलाया इन के अनुआई परस्पर अभिबादन में जय गोपाल सब्द का उच्चारण करते है आप परम प्रतापी सिद्ध पुरुष थे गोकुल राम लीला मैदान के पास आप की बैठक है जो वर्तमान में कुछ भूमाफिया लोगो ने धोके से कब्ज़ा लिया है
श्री गोपेन्द्र लाल जी ~
आप गोपाल लाल जी के पुत्र थे बड़े चमतकारी महा पुरुष थे इनकी पुत्री श्री जमुनेश मर्दानी पोशाक पहनती थी और घोड़े की सवारी करती थी गोकुल में इन की बैठक और प्राचीन मंदिर बिधमान है
श्री ब्रज भूसन जी ~ ( सवत १७०० )
आप परम प्रतापी पुरुष थे अपने पूर्वजो की हि बहती न्याय निति और धरम के
ज्ञाता थे आप ने जयपुर का राज्य माधव सिंह को दिलाया ब्रज भाषा में निति
विनोद नमक ग्रन्थ की रचना की श्री पुरसोत्तम जी ~ (सवत १८०५ )
आप छठे गृह के आचार्य यदुनाथ जी के दितीय पुत्र राम चन्द्र जी की पाचमी पीडी में हुए आप ने गोकुल को पुनह आबाद किया इन्होने रसिया और ख्याल बहुत लिखे है इन्होने रुकी हुयी ब्रज यात्त्राव को पुनह सुरु कराया और ब्रज यात्रा सम्बन्धी १९ पद भी लिखे
श्री कन्हेया लाल जी ~ ( सवत १९२५ )
आप कवी,कीर्तनकार.नाटककार,अभिनेता,
श्री द्वारिकेश जी ~
श्री गोपेश्वर जी ~
वर्त्मनिषित गोस्वामी गणगोकुल के अन्य पुष्टि मार्गीय मंदिर
सात स्वरुप पुष्टि मार्गीय देवालयों के अतिरिक्त गोकुल में पुष्टि मार्ग के २५ अन्य देवालय भी है
१ श्री चिमन्न लाल जी का मंदिर ~
यह मंदिर गोकुल में अस्ट सखी घाट के समीप स्तिथ है पूर्व में इस मंदिर में विराजमान श्री विग्रहो को श्री गोपा लाल जी के मंदिर में हस्थान्तरित कर दिया गया इसमें श्री हरिराय महाप्रभु जी के सेव्य श्री नवनीत लाल गोवर्धन नाथ जी और नटवर लाल जी के स्वरूपों की सेवा होती थी बाद में तीन गोकुल निवासियों ने इस मंदिर को खरीद कर तीन हिस्से कर लिए जिनमे से एक में वर्तमान में गोवर्धन नाथ जी की सेवा पुष्टि मार्गीय बिधि से महा प्रभु जी की बड़ी बैठक के वर्तमान मुखिया जी करते है दुशरे हिस्से श्री बलदाऊ जी रेवती जी का मंदिर गोकुल के पंडा समाज द्वारा बना दिया गया है तिशरे हिस्से में गोकुल निवासियों के निवास है यह बहुत विशाल मंदिर है
२ नटवर लाल जी का मंदिर ~
यह मंदिर गोस्वामी पन्नालाल जी मांडवी बड़ोदा वालो का मंदिर भी कहा जाता है यह भी अस्ट सखी घाट के मार्ग पर स्थित है अभी हाल भी में पुष्टि मार्ग के आचार्य श्री चिमन्न लाल जी महाराज श्री द्वारा इस का पुनर निर्माण कराया है इस में उनको कुछ आसामाजिक तत्वों से बहुत परेशान किया गया पुरे निर्माण[फे के समय में इस स्थान को कई लोगो के द्वारा कव्जाने की कोसिस की गयी और बारम्बार श्री बाबा श्री को अपमानि किया जाता रहा किन्तु गोकुल के सभ्य समाज का आपको समर्थन प्राप्त है पुनर निर्माण से पहले आप हि इसमें ठाकुर जी सहित विराजते थे आपसे पूर्व में यहाँ नटवर जी का श्री विग्रह विराजमान था जो मथुरेश जी के गोद मै वीराजते थे इनका सम्बन्ध आरम्भ से प्रथम पीठ से रहा प्रथम गृह के आचर्य श्री गोकुल चन्द्र जी के पुत्र पन्नलाल जी ने सवत १८४३ में नटवर लाल जी की सेवा की तत्पचात आप माडवी पधारे पुनह सवत १८९९ में आप ने यहाँ छपन्न भोग किया और १ वर्ष तक विराजे पुनः सवत १९१५ में प्रथम पीठ के श्री कृष्ण जी ने नटवर लाल जी को यहाँ पधराया और छपन्न भोग किया उस समय आप जयपुर से लाडलेश जी के नाना श्री जी के यहाँ से पधारे बताये गए है
३ वैनी बेटी जी का मंदिर ~
यह मंदिर गोकुल के नन्द चोंक में स्थित है किन्तु वर्तमान में इसको यात्री निवश बना दिया गया है पूर्व में उज्जेन निवासी एक वैष्णव परिबार यहाँ अपने ठाकुर जी की सेवा करते थे यह मंदिर गोस्वामी गोपाल लाल जी का था इसमें श्री मुरली धर की के सेव्य बल कृष्ण जी और नवनीत लाल विराजमान थे

नन्द चोंक स्थित इस मंदिर में श्री दाउजी और रेवती जी का युगल बहुत प्राचीन श्री विग्रह विराजमान है यहाँ के पंडा समाज के द्वारा इस को क्रष्ण कालीन इन युगलका निज आवाश भी बताया जाता है कुछ किदाम्वातियो इस श्री विग्रह का निर्माण श्री दाउजी के वंसज बर्जनाभ जी के द्वारा भी कराया बताया जाता है पूर्व में इसका संबंध भी प्रथम पीठ के साथ था किन्तु गत वर्षो में इसको गोकुल निवाशी एक परिवार द्वरा इस का अमोलक मोल किया गया है जो इन की पूर्व से हि सेवा करते है और श्री दाउजी और रेवती की इन पर कृपा है
५ श्री गोपाल लाल का मंदिर ~
यह नन्द चोंक में स्थित है इसका कलात्मक द्वार बहुत हि दर्शनीय है इसके दो भाग है एक प्राचीन और एक नविन मंदिर का निर्माण गोस्वामी रणछोड़ लाल जी के द्वारा कराया गया यह मंदिर बहुत भब्य और विशाल है इसके निचे बहुत बड़े तहखाने है नविन मंदिर के चोंक में दो संगमरमर द्वरा निर्मित विशाल भब्य सेर रखे थे इसी चोंक में एक कच्छ में श्री दाउजी का विशाल और भब्य श्री विग्रह स्थापित है यहाँ चिमन्न लाल जी के मंदिर से हस्तातरित नवनीत लाल, गोवर्धन नाथ , नटवर लाल जी के श्री विग्रह सहित श्री बल्लभ के द्वारा सेव्य राणाव्यास के ठाकुर तथा गोसाई जी के सेव्य मथुरा धीश जी विराजमान थे यहाँ गुजरात के सेवक मणि बाई और जेठा भाई सेवा प्रणाली को ठाट बाट से चलाते रहे बाद में यहाँ की वर्तमान गोस्वमिनी श्री रत्ना बहूजी श्री विग्रहो को मुंबई ले गयी और इस मंदिर को अन्य गोस्वामी परिवार ने मोल ले लिया मंदिर का ढाचा पूर्ववत हि है इस मंदिर का एक बगीचा भी है वर्तमान में उसमे खेती होती है
६ नत्थू जी का मंदिर ~
यह नन्द चोंक में स्थित है यह बहुत बड़े दायरे में समाहित था जिसमे बहुत दुकाने है इसमें विराजमान ठाकुर जी को ग्वारिया ठाकुर भी कहा जाता था ये प्रथम श्री गिरधर जी के सेव्य थे प्रथम गृह के जगन्नाथ जी उपनाम नत्थू जी सवत १८४२ ने लगता है इस मंदिर का निर्माण कराया तथा श्री विग्रह की सेवा की इसी से इस मंदिर को नत्थू जी का मंदिर कहा जाने लगा अब इसमें नव निर्माण हो रहा है जो सायद एक यात्री आवाश होगा
७ श्री ब्रजेश्वर जी का मंदिर ~
यह मंदिर नन्द चोंक के समीप हि चोकी नमक स्थान पर है जहा गोकुल के नन्द भवन का रास स्थल भी है जहा विश्व प्रसिद्द नन्द उत्सब भी होता है यह मंदिर इन्दोर वाले गोस्वामी श्री बच्चू बाबा का है यहाँ एक वैष्णव हरिजी भाई के सेव्य श्री मदन मोहन जी विराजमान है यहाँ श्री बल्लभा चर्या जी के हस्त लेख और सुबोधनी जी और पादुकाये विराजमान थी पहले यहाँ सम्प्रदाय के नियम के अनुशार पूर्ण सेवा होती थी अब सुछम सेवा होती है

जैसा की इस के नाम से प्रतीत होता है यहाँ मोर पाले जाते थे और यहाँ गोस्वमिनी श्री पद्मावती जी के समय में बहुत बैभब पूर्ण रूप से ठाकुर सेवा होती थी उन्होने ठाकुर सेवा को ठाट बाट से चालू रखा इस मंदिर में बशबाड़ा के निवाशी वैष्णव गोपाल दास जी के सेव्य मदन मोहन जी विराजमान थे जिनके अद्भुद मनोरथ बहुत हि आनंद के देने वाले होते थे जिनमे दान लीला की झाकी के पुनह दर्शन को भक्त गण पल पल प्रतिच्छा करते थे जल विहार और बेहद कलात्मक फुल मण्डली मन मुग्ध करी दर्शन भी यहाँ होते थे दर्शन के समय यहाँ पालित मोरो के न्रत्य से आनंद चरम सीमा पर पहुच जाता था इस मंदिर की नीव यमुना जी के अन्दर तक है किन्तु अनेक बार यमुना जी में बाड आने पर इस को कोई छति नहीं पहुची प्रत्येक वर्ष श्रावन और फागुन मास में यहाँ से ठाकुर जी को ठकुरानी घाट पर हिंडोला तथा फगुत्सव के लिए राजशी सवारी और गाजे वाजे सहित पधराया जाता था इस मंदिर का भब्य बगीचा रमण रेती के समीप स्थित था जो अब गोकुल के हि एक निवाशी के स्वामित्व में है यहाँ एक मुग़ल कालीन छतरी भागना अबस्था में बिधमान है जो ताज बीबी का बताया जाता है वर्तमान में वर्तमान में मंदिर के बहुत बड़े हिस्से में आवश बना दिए गए है और श्री रघु नाथ जी महाराज यहाँ गोकुल पर कृपा करते हुये विराजमान है
९ श्री काका जी का मंदिर ~
इसमें महाप्रभु जी के सेव्य प्रभु दास जलोटा के मदन मोहन लाल विराजते थे गोकुल में काका जी के दो मंदिर है नया मंदिर अब अन्य गोस्वामी जी के समित्व में है जो बंद रहता है पुराने मंदिर में नाम मात्र की सेवा की जाती है कुछेक वर्षो पहले नए मंदिर में भव्य ता से सेवा होती थी काका जी महाराज की एक बड़ी गौशाला भी थी जो की यहाँ की काकाजी गली नामक स्थान पर थी इस मंदिर का बगीचा गोकुल महावन मार्ग पर स्थित था अब इसमें खेती होती है
१० श्री बालकृष्ण लाल जी का मंदिर ~
यह गोस्वामी ब्रजभुसन लाल जामनगर
वालो का मंदिर है यहाँ महाप्रभु जी के सेव्य बाल कृष्ण जी मदन मोहन लाल जी
विराजमान है मंदिर से बहुत सी दुकाने संलग्न है कुछ वर्षो पहले हि मंदिर के
जीर्ण सिर्ण भाग का पुनर निर्माण कराया गया है इसको ब्रज वासिओ को ब्रह्मण
भोजन आदि के लिए दिया जाता है १० श्री गंगा वेटी जी का मंदिर ~
वर्तमान में यहाँ ठाकुर श्री नन्द लाल परिवार सहित विराज मान है पूर्व में यहाँ श्री रणछोड़ जी तथा लछमन जी रहा करते थे आप प्रसिध्द जोयोतिशी तंत्र सस्त्री और सितार वादक थे इस मंदिर के भट्ट जन बिद्या व्यसनी संगीत प्रेमी थे इया कारण यहाँ एक उत्तम पुस्तकालय भी था जिसमे हस्त लिखित ग्रन्थ भी थे
११ श्री जय गोपाल लाल जी का मंदिर ~
यह पंचम पीठा धिश्वर श्री रघुनाथ जी के द्वितीय पुत्र गोस्वामी श्री गोपाल लाल जी का है आपने स्वयं अपने नाम की नविन स्रुस्ती की यहाँ प्रधानता से श्री गोपाल लाल जी की गाधी की सेवा होती है साथ में श्री बालकृष्ण जी तथा नवनीत लाल के श्री विग्रह विराजमान है समुदाय के गुजराती भक्त जानो का एक ट्रस्ट यहाँ की अनन्य भाब सेवा का सञ्चालन करता है अभी हाल हि में मंदिर का विस्तार करके भय स्वरुप दिया गया है इस मंदिर में एक चादी का विशाल कलात्मक हिंडोला था जो अन्य किशी मंदिर में शायद नहीं था किन्ही अज्ञात कारणों से उस्क्को तुड़वाकर नया छोटा हिंडोला बनबाया गया है नाथद्वारा शेली की कलात्मक पिछवई, हाती दात, चादी के नाना भाती के खिलोने और समस्त सेवा बिधि के साजो सामान यहाँ थे वर्तमान में उनका क्या हाल है हे यह ज्ञात नहीं किन्तु यहाँ श्री गाढ़ी जी और श्री ठाकुर जी की सेवा भव्यता से होती है इस मंदिर का एक बगीचा भी था जहा श्री गोपेन्द्र लाल जी की बैठक भी है वर्तमान में इसको कुछ लोगो के द्वारा पंचम पी[फेठ के गोस्वामी भिक्की बाबा के सहयोग से हड़प लिया गया है जिसका उनको भी पछ्ताप बताया जाता है मंदिर ट्रस्ट अपनी पूर्ण कोशिश करेक भी इसको कानूनन प्राप्त नहीं कर पाया है और सायद हार मान कर चुप हो गया है यह मंदिर के लिए बहुत बड़ी ख्याति है
१२ पुराना श्री लाल जी का मंदिर ~
इस मंदिर का सम्बन्ध प्रथम पीठ से प्रतीत होता है श्री गिरधर जी के बंस में श्री रामकृष्ण जी के पुत्र ब्रजराय जी सवत १८५७ ने श्री लाल जी के विग्रह की सेवा की उनके बाद गोपेश्वर जी उपनाम ब्रज आभरण जी सवत १८७९ ने इन की सेवा की यह मंदिर प्राचीन चंद्रमा जी मंदिर की गली में स्थित है वर्तमान में एक गोकुल वासी सज्जन के अधिकार में है अव यहाँ पुष्टि मार्ग की सेवा नहीं होती है
१३ नया श्री लाल जी का मंदिर ~
पुराने मंदिर से यह कुछ हि दूर है यहाँ
श्री लाल जी के दो श्री विग्रह विराजमान थे १ प्रभु करण लाल जी ( भोरी
बहूजी के ठाकुर ) २ श्री मदन मोहन जी एक विरक्त वैष्णव के ठाकुर इन्हे
सिंग्नंद की छत्रानी के ठाकुर जी भी कहा जाता है श्री गोकुल नाथ जी के
सेव्य मदन मोहन जी के भी यहा श्री लाल जी के मंदिर में ग्वाल मण्डली में
विराजमान होने के भी उल्लेख प्राप्त होते है इसमें जीवराज भाई नामक वैष्णव
सेवा किया करते थे बाद में यहाँ से मुर्तिया कब कहा चली गयी ज्ञात नहीं अब
यह सामान्य भवन है इस मंदिर में पुष्टि मार्ग के प्राचीन परंपरागत किरता
प्रणाली के मर्मज्ञ किर्तनिया जमुना दास जी निवश करते थे आपके पास बहुत से
हस्त लिखित ग्रंथो का संग्रह था १४ कटरा मंदिर ~
इस मंदिर की गोस्वमिनी जी श्री रत्ना प्रिय बहूजी बड़े मोनोयोग से ठाकुर सेवा में रत रहने वाली निधि थी इन के दत्तक उत्तर अधिकारी श्री गोवर्धनेश जी ( वेरावल ) की सत्ता आते हि मंदिर मात्र सामान्य भवन बन कर रह गया अन्यथा बहुत हि बेभव पूर्ण मंदिर था यह यहाँ ठाकुर जी के सय्या मंदिर में शीश महल था सज सज्जा की यहाँ अद्भुद कलात्मक बस्तुये थी ठाकुर जी का विशाल चादी का रथ भी यहाँ था दान लीला हिंडोला आदि मनोरथ यहाँ बहुत भव्यता से यहाँ होते थे गोकुल के कई बड़े नामी कीर्तन कर यहाँ सेवा रत रहे मंदिर में श्री विग्रहो के न रहने पर देख रेख के आभाब में याह की संपदा को घर बहार के लोगो ने लुट लिया "ललना" पद के रच्यियता गोपाल दास के ठाकुर मदन मोहन जी यहाँ विराजमान थे वर्तमान मंदिर के कपट पूर्ण हस्तांतरित के बाद यहाँ नन्द लाल सपरिवार विराजमान है और मर्यादा की सेवा होती है
16 राजा ठाकुर का मंदिर ~

१७ श्री जीवन लाल जी का मंदिर ~
यह मंदिर बहुत पूर्व से हि खंडहर हो चूका है इसका प्राचीन द्वार अब भी शेष है उसके पासर्व में नया ठाचा खड़ा हो गया है जो निजी आवश के रूम में है राजा ठाकुर मंदिर के बगल में स्थित इस मंदिर में महाप्रभु जी के सेव्य मदन मोहन जी विराजमान थे कहते है की इन ठाकू जी के चोरी हो जाने से कुपित होकर गोस्वामी जीवन लाल जी गोकुल की और धूल फेंकते हए पोरबंदर चले गए गोस्वामी बिठ्ठल नाथ जी से सतो लाल जी जिस भागवत से पाठ किया करते थे वो पोरवंदर के जीवन लाल जी मंदिर में विराज मान बताई जाती है
१८ श्री दान बिहारी दाउजी का मंदिर ~
वर्तमान राजा ठाकुर जी मंदिर के निकट हि यह छोटा सा भवन है याह का श्री विग्रह बहुत मान मोहक है इसमें एक गोकुल निवाशी पुष्टि मार्गीय रीती से सेवा करते है गोकुल निवाशी किर्तनिया राधे श्याम जी सेवा करते रहे वर्मन में यह लगभग बंद सा है
१९ श्री बल्लभा चार्य जी का मंदिर ~
यह प्राचीन गोकुल चन्द्रमा जी मंदिर के घेरे में था इसके लाल पत्थर से निर्मित दरवाजा हि सेष है सवत १८८० के एक हस्त लिखित ग्रन्थ से ज्ञात होता है की यहाँ पंचम गृह के सेव्य दो श्री विग्रह भी विराजमान थे अब ये स्वरूप जय गोपाल लाल जी के मंदिर में विराजमान है
२० श्री गिरिराज जी का २० मंदिर ~
यह नवनिर्मित मंदिर बिच चोंक में स्थित है यहाँ श्री गिरिगोवर्धन की पवित्तर सिला श्रंगार सहित विराजमान है गोकुल निवाशी एक ब्रह्मण सेवा करते है यही उनका निवश भी है जय गोपाल लाल जी मंदिर और गंगा बेटी जी मंदिर यहाँ सै निकट हि है
२१ श्री गोवर्धन नाथ जी का मंदिर ~
यह श्री गोकुल नाथ जी मुंबई वालो के अधीन था यह नन्द चोंक से बिच चोंक जाने वाली बजरिया में स्थित है वर्तमान में यह निज निवाश है २२ श्री फुटरा मंदिर ~
इस का यह नाम हि इस की प्राचीनता का पर्याय्बाची है इस का निर्माण सम्भ्ब्तय 7 स्वरूप की (हवेली) मंदिरों के कुछ समय बाद हि हो गया था
जिस गली में यह थित है वह गली फुटरा मंदिर गली कहलाती है पंचम पीठ के गोस्वामी श्री जय गोपाल लाल जी के पुत्र श्री गोपेंदे लाल जी की पुत्री जमुनेशी का यह मंदिर है ला पत्थरों से निर्मित इस मंदिर के निचे बहुत बड़ी सुरंग बताई जाती है इस की देख भाल जय गोपाल लाल मंदिर ट्रस्ट के द्वारा किया जाता है श्री जमुनेश जी के जन्म दिन पर यहाँ मनोरथ होता है यहाँ कोई चित्र अथवा विग्रह नहीं है यहाँ तो बस उन के बैठने का चबुतरा है जिस की भावनात्मक सेवा की जाती है
२३ चिंतामणि माधव का मंदिर ~
यह मंदिर प्राचीन सिंह पोर के घेरे में अवस्थित है जिसमे बिठ्ठल नाथ जी मदन मोहन जी तथा कल्याण राय जी के मंदिर भी है पुराविग्यनियो के अनुशार यहाँ का श्री विग्रह १० या १२ वि सती के है सत्य हि या श्री विग्रह परम मनोहर है और नाम के अनुरूप आप चिंता मणि भी है गुजरती भाटिया वैष्णवो में आप की विशेष मान्यता है यहाँ के सेवायत वैसे तो सदा से मालाकार थे और कहते है की आप का सम्बन्ध मथुरा के उस घराने से है जिन्होने मथुरा पहुचने पर कृष्ण बलराम का माला पहना कर स्वागत किया था परम भाग्य शाली यह विद्वजन पतंग उड़ने बहुत माहिर है और इनका परिवार बड़ी हि सब्धानी और सरधा से श्री ठाकुर जी की सेवा करता है
२४ बाल मुकुंद जी का मंदिर ~
यह देवालय केवल यहाँ के ब्रजवासियो के मन में है यह अब विलुप्त हो चूका है बारता के अनुसार इस को पूर्व देश के निवाशी भीष्म दास जी ने बनबाया था श्री गोसाई जी ने उसको दिच्छा देकर बाल मुकुंद जी का विग्रह सेवा हेतु दिया था ठाकुर जी ने उनको स्वप्न दिया उस पर आपने गोसाई जी कहा की ठाकर जी ने मझको मंदिर नया बनाने को कहा है तव आज्ञा पाकर अपने यह् मदिर बनवाया था और ठाकुर जी क उमे पढाया सेवा से अबकाश पाकर आप संध्या समय नित्य रमण स्थल वर्तमान रमण रेती जाया करते थे यह देवालय किसी ने देखा नहीं है सम्भाभ तय यह काल के चक्र में भूगर्भ में विलीन हो गया
अन्य प्रसिद्ध महोत्सव महा उत्सव
गोकुल अपने उदय काल से महोत्सवो उत्सवो की भूमि रहा है जिनका क्रम यहाँ कोमोबेश वर्तमान में भी चालू है कृष्ण काल में यह उत्सब नन्द बाबा मानते थे आज हम सब इनको मानते है स्वरूप छोटा या बड़ा समय अनुशार होता रहता है किन्तु गोकुल में पहला पुष्टि मार्गीय महामनोरथ
सवत १६४० में हुआ तब श्री गोसाई जी ने सम्प्रदाय के सतो स्वरूपों का छपन्न भोग किया था पुनह १६५७ में श्री गोकुल नाथ जी के समय दन्त राय जी ने रिची के बाग में फगौत्सव किया इसके बाद सवत १६९३ में श्री कल्याण राय जी मंदिर में छपन्न भोग महामनोरथ हुआ गोसाई जी के पाचवे और छटवे लाल श्री रघुनाथ जी और यदुनाथ जी का बिवाह और गोकुलनाथ जी के दोनों पुत्रो श्री गोपाल जी और बिठ्ठल नाथ जी जी के विवाह के उपलछ में हुए मनोरथ को भी महामनोरथ को श्रेणी में रखा जा सकता है उस समय की धूम को वर्षो तक लोगो याद रही बर्ताव में उल्लेखित है की श्री रघुनाथ जी के विवाह में तुलसी दास जी गोकुल पधारे गोकुल नाथ जी मंदिर के गोस्वामी श्री वेणु राजा जी का विवाह भी गोकुल में बड़ी धूम धाम से हुआ इस में भरतपुर के राजा और गुजरात के बड़े बड़े धनि मानी सेठ साहुकार सम्मिलित हुए उन दिनों गोकुल में अस्थायी बिद्युत प्रकाश विवाह संपन्न होने तक रहा आलिशान महफ़िल सजी भरतपुर और मथुरा के कई बैंड कई दिनों तक बजते रहे हटी पर गोसाई जी की सवारी निकली बहुत रोनक हुयी सवत १९६५ में मथुरेश जी के गोकुल पधारने पर महाउत्सब हुआ तत्पचत पुनह २०२५ में द्वरिका धीश और मदन मोहन जी के गोकुल पधारने पर पुनह नवनीत प्रिय जी ( लालन) के नाथद्वारा से गोकुल पदारने पर पुनह कल्याण राय जी के गोकुल पधारने पर गोकुल में महोत्सव हुए

सन १९२७ में गोस्वमिनी श्री पद्मावती बहूजी महाराज (मोर वाला मंदिर ) ने मुरलीधर घाट के समीप मोती वाली धर्म साला के पीछे बहुत विशाल छपन्न भोग कराया बड़े बड़े लड्डू बनाने के लिए मिटटी द्वरा निमित धडो का प्रयोग किया बड़े बड़े मोहन थारो को उस समय फावड़ो से कट कर छोटी छोटी कतलिया बनायीं गयी इस कार्य को एक महा तक सेकड़ो लोगो ने मिलकर किया इस उत्सव में १००८ बोरी चीनी हार चीनी की बोरी पर ३ पीपा घी ४७ सेर केसर का प्रयोग हुआ उस समय गोकुल का यमुना तट सामिग्री से भर गया महीनो तक भी प्रसाद बटने पर भी यह समाप्त नहीं हुआ था गोकुल के कुछ लोगो के पास इस उत्सव के फोटो है मंदिर के बही खातो में इसका व्योरा भी दर्ज है

अन्नकूट का सम्बन्ध इंद्र के मान भंग से है उस समय ब्रज वासियों ने गिरिराज की पूजा की इस पूजा के लिए ब्रज जन कच्ची पक्की सब प्रकार की मिश्रित सामिग्री बनाकर लाये इसी परंपरा से अन्नकूट होता है अन्नकूट में भात की बड़ी महिमा है श्री नाथ जी के अन्नकूट में तो दर्शन उपरात भात की लुट होती है इसमें नाना प्रकार के पकवान होते है
कुनबाड़े में गोवर्धन पूजा नहीं होती भोग में सकदी भी नहीं आती इसमें सिमित मात्रा में सामिग्री भोग आती है इसमें ठोर सेब के लड्डू सिरा खीर भोग आती है अधिकंस्यतह यह गोस्वामी जानो के द्वरा हि कराया जाता है इसमें सजावट भी अन्नकूट से भिन्न होती है
छपन्न भोग एक बड़े कुन्बाड़े का हि रूप है इस की कोई सीमा नहीं होती इसमें सख्दी होती है किन्तु कम मात्र में होती है इसमें बिबिध प्रकार के अन्य मिस्थान होते है इसमें भी गोवर्धन पूजा नहीं होती है
मंदिरों का महाप्रसाद ~
यहाँ के प्रसाद में ठोर मठरी सर्वाधिक प्रचलित है यह मंदिरों की देनिक भोग सामिग्री में सामिल है इनके आलावा पपड़ी खरखरी सेन की पूरी लिटी ओर लोटी अन्नकूट के समय निर्मित होने वाले पदार्थो में मेवा भात दही भात सिखरन बड़ी विलरारू पवची तवा पूरी मोहनथर घेवर बावर मैसुक उपरेठा खरमुन्दा तिलसाकरी सुहारी इन्द्र्रषा कपुर्नारी मनोहर पंचधारी सहित नाना प्रकार के लड्डू चंद्र्कलन खरंज के गुजा आदि बनाये जाते है जिनको बड़े बड़े टोकरो में रखकर श्री ठाकुर जी के सामने पधराया जाता है दर्शनों उपरात इनको सेवको वैष्णवों और ब्रज वासियों को बाट दिया जाता है
गोकुल में यवनी उपद्रव
जिस गोकुल को बल्लभ कुल के गोस्वामियो जानो अपनी अध्यात्मिक साधना और कला कौशल के द्वारा आकाश की उचाइयो तक पहुचाया उस गोकुल का बैभब पुरे १०० वर्षो तक भी कायम न रह सका कुटिल कल की छाया गोकुल पर हि नहीं समस्त ब्रज मंडल पर गहराने लगी उन दुर्दिनो में कुछ तुच्छ मानशिकता बान लोगो ने सामाजिक सद्भावना को गौड़ बना दिया
शाहजह कल में मथुरा का फोजदार मुर्सिद कुली खां तुर्क गोकुल में श्री कृष्ण जन्म अस्ठ्मी मेले में आकर तरह तरह के उत्पात किया करता था सं. में उसको सोते समय मर डाला गया
ओरंगजेव के समय उसने सं. १७२७ में मथुरा पर आक्रमण किया जिसकी आग गोकुल तक पहुची इसी छेत्र के गावं सिहोरा निवाशी गोकुल नमक जाट ने उसके खिलाप बिद्रोह किया यह हमला आगरा से किया गया था उस समय आगरा से मथुरा आने के लिए यमुना पर करके महावन होते हुए हि मार्ग था हार तरफ होती लुट पाट के कारण और किसी भी प्रकार का सहयोग न पाकर गोस्वामी समज के आचर्यो ने गोकुल से निधियो को अन्ययंत्र हस्थारित करने का विचार किया जाने लगा भीषण अत्याचारों के इस युग में उनको अपने साधना स्थलों मै सुरछित रहना संभब न था अपने विग्रहो की सुरछा को अधिक चिंतित थे प्रभु कृपा से पूर्वानुमान से हि इस आग की लपटों के उन तक पहुचने से पहले हि श्री नाथ जी सहित समस्त निधियो को गोकुल से सुरछित स्थानों को ले जाया गया जहा उनके लिए नये मंदिर बनबाये गये तब से लेकर आजतक यह निधिय उन्ही स्थानों पर विराजमान है
साम्प्रदायिक उल्लेखो के आधार पर ~
गोकुल से नवनीत प्रिय जी और ब्रज से श्री नाथ जी का मेवाड़ गमन सवत १७२५ में हुआ उनके पहले हि श्री बिठ्ठल नाथ जी खमनोर को गमन कर चुके थे यह तीनो श्री विग्रह वर्तमान में नाथद्वारा में विराजमान है तृतीय पीठ के ठाकुर श्री द्वारिका धीश जी गोकुल में सवत १६२८ से सवत १७२० कुल ९२ वर्ष विराजमान रहे सवत १७२१ में उनके राजनगर पधारने का उल्लेख प्राप्त होता है सवत १७२७ के पूर्व मेवाड़ के सादड़ी नामक स्थान पर तत पश्चात् असोट्या में विराजे सवत १७३६ में महाराजा संग्राम सिंह के राज्यकाल में मंदिर बन जाने के पश्चात काकरोली राजिस्थान
पधारे वर्तमान में वही विराजमान है गोकुल स्थित बिठ्ठल नाथ जी मंदिर की छत दो बार गिरी इसी को संकेत मान श्री हरिराय जी ने बिठ्ठल नाथ जी के स्वरूप को अयन्त्र कही ले जाने का निश्चय किया जिनको सवत १७२७ में गोकुल से खमनोर पधराया गया प्रथम पीठ में सेव्य श्री मथुरेश जी के सम्बब्ध में उनके प्रस्थान की तिथि ज्ञात नहीं हो सकी है जिनको गोकुल से कोटा पधराया गया सवत १७९७ और सवत १८७९ में नाथद्वारा में आयोजित भव्य छपन्न भोग महोत्सव मै इनके श्री विग्रह को कोटा से हि पधराया गया वह वर्तमान में भी कोटा मै हि विराजमान है उल्लेखो से ज्ञात होता है की गोकुल के समस्त स्वरूपों को सवत १७२५ से सवत १७२८ के बीच हि हस्तातरित किया गया है
उत्तर काल में गोकुल ( सन. १७५७ )
इस समय मुग़ल बादसाह आलमगीर का सासन काल था जनवरी १७५७ सवत १८१४ में अफगानिस्तान के शासक अहमद साह ने यहाँ पहुचकर अपने २० हजार सैनिको और दो सरदारों को मथुरा को लुटने का आदेश दिया फागुन का महिना था होली का त्यौहार समीप था इस आक्रमण के कारण मथुरा में तिन दिनों तक मार काट मची रही
इस बीच आहमद साह भी सेना सहित मथुरा आ पंहुचा उसका मकसद गोकुल को लूटकर वहा से आगरा जाना था उसने मथुरा से नदी पार कर के उसने पहले महावन पार आक्रमण किया फिर गोकुल की तरफ आने प़र उसका सामना ससस्त्र नागा साधुओ से हुआ उन्होने यवन सेना का जमकर मुकावला किया इसी समय यवन सेना में हैजा फ़ैल गया जिससे सैनिक मरने लगे अत वह वापस लोट गया इस प्रकार नागा साधुओ की वीरता और देवीय सहायता से गोकुल उनकी क्रूरता का सिकार होते होते बच गया हो सकता है उस समय अब्दाली के सैनिको ने गोकुल को कुछ छति पहुचाई हो साम्प्रदायिक उल्लेखो से यह ज्ञात होता है की उस समय छठे गृह के आचार्य श्री पुरसोत्तम जी ने गोकुल को पुनह आबाद किया था इन उल्ल्खो से ज्ञात होता है की अपने ४०० वर्षो के इतिहाश में कई बार उजड़ा और बसा और पुष्ठी मार्ग के आचार्यो की कृपा से इसको पुनह आबाद किया
गोकुल के अन्य मर्यादा मार्गीय मंदिर
गोकुल भगवान श्री कृष्ण की क्रीडा भूमि है यही बाबा नन्द और मैया यसोदा के आगन में आपने बाल लीलाये की श्री कृष्ण कालीन नन्द भवन के अबशेष तो यहाँ नहीं है किन्तु उसके प्रतिक स्वरूप नंदराय जी का नन्द भवन यहाँ है

यह गोकुल का प्राचीन नन्द राय के भवन का वर्तमान रूप है यहाँ विशाल नन्द बाबा यसोदा मैया योगमाया कृष्ण बलराम जी के श्री विग्रह सहित नन्द लाल पालने में झूलते है सम्पूर्ण मंदिर में संगमरमर जड़ा हुआ है यह द्वारिकाधीश जी के प्राचीन मंदिर के निकट यमुना किनारे स्थित है यहा से यमुना जी का प्रवाह और कछार का बड़ा मनोरम द्रश्य दिखाई देता है इस मंदिरमे पूतना मइया उखल बंधन और श्री वशुदेव जी के गोकुल आगमन की झाकिया भी दर्शनीय है मर्यादा मार्ग के मंदिरों में यह सबसे बड़ा और प्रमुख मंदिर है नन्द किला समिति इस की सम्पूर्ण व्यस्था करती है पूर्व गोकुल के अधिकतम व्यक्तियों की आजीवका यही से चलती थी किन्तु समाज सुधार और सांस्कृतिक गति बिधियो में यह आज भी अग्रडीय है बल्लभ कुली मंदिरों के पलायन के बाद से हि अब यहाँ के सार्वजानिक उत्सव (नन्द उत्सब और होली के उत्सव को जिसमे यहाँ से नन्द लाल को मुरलीधर घाट पर पधरया जाता है ) हि गोकुल की शोभा है इन उत्सवो में देश विदेश के सर्धालू गोकुल में खिचे चले आते है इस मंदिर की ठाकुर सेवा भी उत्तम प्रकार की है नन्द लाला के बाल स्वरुप में यहाँ विराजमान होने से यहाँ बारम्बार भोग लगा सकने की प्रथा के कारन यहाँ सुबह ७ से साय ६ बजे तक दर्शन सुलभ है वर्तमान में यहाँ के सरछ्क श्री जिला जज महोदय जी ने समिति के निर्माण में विवाद होने के कारण
व्यस्थापक के रूप में श्री के.के.अरोड़ा जी को न्युक्त कर रखा है इनके कार्य काल में यहाँ के नन्द उत्सव को राम श्याम ब्रज महिमा संसथान ट्रस्ट के सहयोग से सन २००८ में भव्य रूप देने की कोशिश कर परंपरा को पूर्व से बेहतर बनाया गया इसको देखकर अब इन प्रायशो को अधिक लोगो
का सहयोग प्राप्त हो रहा है

यह मंदिर ठकुरानी गोविन्द घाट पर स्थित है यहाँ श्री कृष्ण और यमुना जी का श्री विग्रह विराजमान है वासुदेव जी के श्री कृष्ण को गोकुल लाते समय यमानुजा श्री यमुना जी ने उचित अबसर जाना चरण स्पर्श कर पटरानी होने का वरदान पाना चाह इस कारण आप ऊपर आने लगी पिताजी की समस्या को समज कर श्री कृष्ण ने पग निचे लटकाकर यमुना जी को चरण स्पर्श कराया इसके प्रतिक स्वरूप यहाँ इस मंदिर की स्थापना हुयी यहा बड़े हि बेभब पूर्णता इनकी सेवा की जाती है सुबह साय आरती होती है जिसमे बहुत से गोकुल वाशी और वैष्णव नियम से सामिल होते है यह मंदिर नन्द किला समिति के अधीन है

श्री कृष्ण का जन्म मथुरा की जन्म भूमि में हुआ इसी रात श्री योमाया का जन्म यहाँ गोकुल में यसोदा मैया के गर्भ से हुआ इन को वासुदेव जी ने ले जाकर कंस को दिया और आप हिने कंस को अस्ट भुजी देवी का रूप धरकर कंस को बताया की तेरे मारने वाला तो ब्रज में पैदा हो गया फिर देवराज इनको स्वर्ग ले गए वहा महाअभिषेक के बाद आप बिन्द्याचल पर विराजमान हुई यह मंदिर इन का गर्व गृह माना जाता है यहाँ एक गोकुल निवाशी माँ की बड़ी सरधा से सेवा करते है यह मंदिर भी नन्द किला समिति के आधीन है

इस मंदिर को यहाँ हिन्दू रीती रिवाज प्रथम गणेश के तर्ज पर यहाँ बनबाया गया होगा किन्तु बर्तमान में बस्ती यहाँ से आगे भी हो गयी है इससे यह ज्ञात होता है की बास्तु के सम्बन्ध में भी यहाँ का समाज बहुत जागरूक था
शीतला माता का मंदिर ~
यह नगर देवी का मंदिर है कुछ लोग इसे कत्यानी मैया का मंदिर भी बताते है किन्तु ब्रज के प्रत्येक स्थान पर नगर देवी के स्थापना की प्रथा है यहाँ होली के बाद बसोडा पूजा जाता है यहाँ के लोगो का मानना है यह देवी नगर की रछक है
सत्य नारायण जी का मंदिर ~
यह मंदिर रामलीला मैदान के समीप स्थित था यहाँ बाम मार्गीय बंगाली साधू सेवा किया करते थे वर्तमान में यहाँ निजी सेवा होती है
श्री राम मंदिर~
यह गोपाल घाट के समीप है यहाँ रामानद सम्प्रदाय के आचार्यो की दुशरी बड़ी गद्दी है इसके संस्थापक परमहंस भगवान दास थे आप श्री राम चन्द्र के परम भक्त थे आप हरियाणा से गोकुल में दर्शन करने पधारे और इस स्थान पर आकर आपको श्री कृष्ण के गौचरण के दर्शन हुए आपने देखा की श्री भगवान कानो में कर्ण फुल लगाये ग्वाल वाल और गौओ सहित गौचरण करते हुए पधार रहे है आप हीओ हीओ की मधुर ध्वनी करके गौओ को पुकारते जाते है यह मनोरम द्रश्य देखकर आपको परम आनंद प्राप्त हुआ और आपने विचार किया "रामस्तु रस रूप त्वात अस्मत प्रभु समोमत :" राम हि श्री कृष्ण के रूप में यहाँ है इस भाब्ना के बशिभुत होकर आपने गोकुल में निवाश का निश्चय किया यहाँ पर १२० वर्ष की दीर्ग आयु तक आपने निवाश किया
यहाँ आज भी सेवा होती है साधू संतो की भोजन की व्यस्था है
श्री राधा कृष्ण मंदिर ~
यह गोपाल घाट के समीप हि है यहाँ यह कोठरी आज भी है जिसमे श्री राधा कृष्ण के श्री विग्रहो की सेवा होती थी वर्तमान में इसमें श्री हनुमान जी विराजमान है और गोकुल निवाशी यहाँ इन की सेवा करते है नयी बगीची भी बन गयी है यहाँ गोड़िया सम्प्रदाय की ब्रज यात्रा भी पूर्व में ठहराव करती थी
श्री हनुमान मंदिर ~
श्री यमुना जी और श्री मद गोकुल
श्री महाप्रभु जी के गोकुल पघारने पर श्री यमुना जी ने आप को मूल गोकुल का स्थान हि नहीं बताया स्वयं भी सेवा की आकांछा से आपने इन के माध्यम से पुष्टि मार्ग की स्थापना करायी और श्री गुसाई जी पर कृपा करके इस सेवा मार्ग को उत्तमौत्तम रूप दिलाया क्योकि यह सर्व विदित है की श्री यमुना जी श्री भगवान कृपा स्वरूपा है सेवा से हि कृपा प्राप्त होती है आप पुष्टि की महारानी है तो आप भक्तो के सेवा मार्ग में डालकर सिद्ध करती है उन्हे कृपा पाने लायक बनाती है तत्पश्चात प्रभु की आज्ञा से स्वयं कृपा करती है श्री मद भागवत में से यह ज्ञात होता है की एक समय पूर्ण सूर्य ग्रहण होने पर सभी भारत वर्ष के सभी घराने कुरुछेत्र पहुचे जहा श्री कृष्ण भी अपनी सभी रानियो सहित पहुचे तब किशी के सभी रानियो से यह पूछने पर की वह श्री कृष्ण को कैसे रिझाती है तो किशी ने कुछ कहा किशी ने कुछ कहा आप ने कहा था में तो इनके महलो की सेविका हु इसी से आप मुझ पर प्रसन्न रहते है इन के इस कथन का पुष्टि मार्ग के सिद्धांतो पर स्पस्ट असर दिखाई देता है जैसे श्री राधा अल्ह्लाद स्वरूपा है चेतन्य महाप्रभु जी द्वारा आनंद उन्मुक्त नृत्य द्वारा हरी कीर्तन करने से अल्ल्हाद स्पस्ट होता है इसी प्रकार यमुना जी के स्वामित्व का यह पुष्टि मार्ग सेवा का मार्ग है इस पथ के अनुरागी कुछ अंतर मुखी व्यक्तित्व के स्वामी होते है हार कार्य को निति रीती से करते है
गोकुल से आप का सम्बन्ध पुष्टि मार्ग के द्वारा तो है हि आप को यही पर श्री कृष्ण के चरण स्पर्श करने का सोभाग्य प्राप्त हुआ और आप की वर्षो की साधना यहाँ पूरी हुयी और आप की हि कृपा से गोकुल के कुपो में ठंडा मीठा जल था आप की मनोहारी छटा से हि यहाँ का प्राकृतिक सोंदर्य था आप हि की कृपा से यहाँ जीवन है धन है सम्मान है और सब कुछ है आज भी यहाँ के निवाशियो के सभी संस्कारो में यमुना पूजन सर्वप्रथम होता है यहाँ के बच्चे बड़े बड़े सभी में आप के प्रति एक अनकही सर्धा है ओर इनके लिए हि नहीं समस्त ब्रज के लिए श्री यमुना जी सबकुछ है
वर्तमान में यमुना जी ~
श्री कृष्ण काल में यमुना जी के पावन किनारे पर कहते है की स्वर्ग के ब्रछ थे हीरे मोती नीलम पन्ने पुखराज आदि रत्ना भरण यहाँ चहु ओर बिखरे हुए थे किन्तु वर्तमान के स्वार्थ ने श्री यमुना जी का क्या हाल कर दिया है यह किशी से छिपा नहीं है अब तो किशी तीर्थ यात्री को यहाँ के पण्डे आचमन की कहने से डरते है किसी की अधिक सर्धा हो तो अब आपको जरा सा मस्तक पर चदता है कुछ तो हात डालने से भी डरते है गोकुल में यमुना जी पर बांध होने के कारण यहाँ प्रदूषित जल भरा हुआ है और कूप अब जल पिने लायक नहीं है यहाँ तक की भू गर्भ स्रोतों से दुर्गंदित जल निकल रहा है जिसमे अनेक विशेले तत्व मिले हुए है जिसको कई बार प्रमाडित भी किया जा चुका है की यह पान करने लायक नहीं है गोकुल कही कही बहुत दुर्भाग्य शाली है कही भाग्य शाली प्रतीत होता है बैराज बनने से अन्ध्धुन्द विकाश तो हुआ किन्तु यमुना जी की धार के साथ प्राक्रतिक सोंदर्य कही खो गया यहाँ के कई घाट यमुना जी के न होने से अस्तित्व के संकट से जुज रहे है अब तो केवल चतुर मश में अछि वर्षा होने पर हि यमुना जी का स्वच्छ स्वरुप में दर्शन होता है कई बार यमुना जी ने इस समय में मर्यादा तोड़कर नगर के अंदर भी पधारती है इसका सवसे बड़ा असर सन १९७८ में यहाँ देखा गया तब यहाँ गोकुल कई स्थानों पर घरो की निचली मंजिल डूब गयी थी मंदिरों में मुखिया जी अन्य सेवक गण नवो में सवार होकर मंदिर में सेवा करने जाया करते थे नन्द चोंक स्थित बलराम रेवती जी के मंदिर में यहाँ से सेवायत श्री जमुना दस जी पुजारी नित्य तेर कर भांग आदि का भोग लगते थे वह बताते है की तब बलराम रेवती जी के श्री विग्रह का मुखारविंद हि यमुना जी में डूबने से बचा था इसके बाद कई बार यमुना जी गोकुल में पधारी किन्त इस तरह नहीं अंतिम बार सन २०१० के सितम्बर में आप गोकुल के नन्द चोंक तक पधारी इस ऋतू के पश्चात पुरे वर्ष में आप बहुत हि दीन अवस्था में रहती है कहते या लिखते शर्म आती है किन्तु यह बताना बहुत जरुरी है की मतहा वर्न्दावन सहित ओकुल में भी यहाँ का सारा गन्दा पानी यमुना जी में हि डाल दिया जाता है इस के रुरछा के कुछ उपाय पूर्व में हुए थे किन्तु ये उस समय की आबादी के हिशाव से प्लान किये गए थे इन के अमल में आने में वर्षो लग गए तह तक स्थिति भयानक हो गयी और यह वर्तमान की छमता से कार्य नहीं कर पा रहे है उसपर भी कल कारखानों और दिल्ही n .c .r से हि यमुना जी में सारी गंदगी डाल दी जाती है ग्रीष्म काल में तो यमुना जी में कीड़े पड़ जाते है और बहुत दुर्गन्ध आती है इनकी यह दशा देखकर भक्त समज के मन को बहुत पीड़ा होती है कई संस्थाए इस के खिलाफ आबाज बुलद कर रही है और कुछ हद तक सफल भी हुयी है किन्तु पूर्ण सफलता अभी बहुत दूर है राम श्याम ब्रज महिमा संसथान इस कार्य को करने में सहयोग करने को गवर्निंग बोर्ड की मीटिंग में प्रस्ताव पास कर चूका है और जल्द हि इसके लिए उच्चतम प्रयाश किये जायेंगे हम समय समय पर यमुना प्रदुषण के संबंध में होने वाले कार्यक्रमों को नेट पर प्रकाशित कर इस के लिए माहोल तेयार करेंगे इन की बात को सम्बंधित बिभागो और व्यक्तियों तक पहुचाएंगे तन मन धन से सहयोग करेंगे यह हमारा संकल्प है
गोकुल में लगभग सव बगीचियो में श्री हनुमान जी के मंदिर है किन्तु यहाँ गोपाला घाट के आधीन अस्तल नामक स्थान पर हनुमान जी का बहुत प्राचीन विशाल श्री विग्रह बिधमान है इस मंदिर की एक दीवाल पर एक यन्त्र बना हुआ है कहते हे की इस को किसी कांसे की थालि मे बनबाकर किसी प्रसूता स्त्री को इस में जल भर कर पिलाने से प्रवस के समय दर्द नहीं होता है
दूशरा बड़ा मंदिर रमणरेती के समीप गोपी कुआ नामक स्थान पiर है यहाँ भी हनुमान जी का विशाल श्री विग्रह है यहाँ गोकुल मथुरा महावन सभी जगहों से भक्त गण आते है और कहते है की यहाँ से सभी की मनोकामना पूरी होती है हल हि में इस मंदिर का जीर्णोधार कराया गया है यहाँ आये दिन बड़े बड़े मनोरथ होते रहते है

गोकुल श्री यमुना जी के तट पर है इस लिए यहाँ घटो का होना स्वाभाविक हि है कवी जगता नन्द जी ने अपनी कविता में ब्रज में कुल सोलह घाट बताये है जिनमे गोकुल में आप चार घाट बताते है "ब्रज में सोलह घाट है लाखो घाट ब्रह्माण्ड गौ घाट गोविन्द् को घाट जू बन्यो प्रचंड अरु ठकुरानी घाट घाट जसोदा देखि हि उत्रेस्वर को घाट घाट वैकुंठ हि पेखी " १ जसोदा घाट २ ठकुरानी घाट ३ गोविन्द घाट ४ उत्रेस्वर घाट ये चारो प्राचीन घाट यहाँ आज भी है इन के आलावा गोकुल घाट, वज्रंगड़ घाट, मुरलीधर घाट, अस्ट सखी घाट, जगन्नाथ घाट,गोपाल घाट,बल्लभ घाट, भी यहाँ बिधमान है

उत्रेस्वर घाट ~ इस घाट पर कोई पक्का घाट जैसा निर्माण नहीं है लगभग २५ वर्षा पूर्व यह से मथुरा जाने को नाव लगती थी रेती का सरकारी ठेका भी था परन्तु इस घाट का प्राचीन अभिलेखों में विवरण प्राप्त होता है हो सकता है की श्री वशुदेव जी गोकुल में उस रत यहाँ से हि गोकुल में उतरे हो इस कारण इस घाट का नाम उत्रेस्वर हो गया वर्तमान में यह भू माफियाओ ने निशाने पर है और अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है
श्री यसोदा घाट ~ यह घाट प्राचीन द्वारिका धिस जी मंदिर के निचे स्थित है यहा बहुत हि सुंदर घाट अब भी है इसकी बनावट को देखकर लगता है की सत्य हि यह घाट स्त्रीओ के लिए हि विशेष बनाया गया था कहते है की यहा यसोदा मैया यमुना जी से जल भरने आती थी
गोकुल घाट ~ यह देवला के जंगल में अस्तल के समीप स्थित है यहा से पूर्व में मथुरा जाने को नाव मिलती थी आवागमन के कारण हि यह घाट यहा स्थित है
बज्रंगड़ घाट ~ यह घाट बजरंग गड नामक बगीची पर स्थित था पूर्व में यहा बगीची पर भजन संध्या मल्ल बिधा आदि को जाने वाले गोकुल निवाशीओ का साधना स्थल था गोकुल बैराज बनने के पश्चात यह विकाश की भेट चढ़ गया
मुरली धर घाट ~ यह घाट अपने वर्तमान मनोरथ और दुर्दशा के लिए खुश भी है और आशु भी बहा रहा है गोकुल निवाशी बताते है की यह स्थान नित्य सिद्ध है यहा बहुत से साधू संतो ने तपश्या की जिनमे बम मार्ग के डंडी स्वामी जी महाराज प्रमुख है वर्तमान में यहा नन्द लाल होली खेलने पधारते है कहते है की यहा श्री राधा जी को कृष्ण जी ने सर्वप्रथम २ वर्ष की उम्र में रंग लगाया था वह यहा अपने पिता के साथ नन्द राय से होली मिलन को आई थी वर्तमान में गोकुल बैराज बन जाने के कारण यहा यमुना जी का प्रबाह नहीं है और गोकुल का गन्दा पानी भर रहा है यहाँ प्रति वर्ष कुछ बड़े उत्सव भी होते है ऐसे में यह बड़े सरम की बात है
अस्ट सखी घाट ~ यह घाट पूर्व के समय में हि अस्तित्व खो चूका है यहा अब इस के कुछ अबसेष हि बिधमान इसके इतर यहा अस्ट सखी घाट नामक मोहल्ला बिधमान है इस घाट पर भी यमुना जल का प्रबाह गोकुल बैराज के कारण अब नहीं है
जगन्नाथ घाट ~ यह घाट भी अब उपेछ का सीकार हो गया है वर्तमान में यह आधे से अधिक कूड़े से दब गया है राम श्याम ब्रज महिमा संसथान ट्रस्ट इन प्राचीन संपदाओ के सरछां को गंभीर प्रयाश करना चाहता है इस में आप का सहयोग कि उपेछा है जय श्री कृष्ण
गोपाल घाट ~ यह घाट भी बहुत प्राचीन यहा श्री कृष्ण रमण रेती महावन से गौ चराते हुए लोटते समय यहा गौओ को यमुना में जल पिलाया करते थे और ग्वाल वालो सहित आनद मनाया करते थे यहा अब गोकुल निवाशियो का समसान है
बल्लभ घाट ~ यह घाट गोकुल नाथ जी के सेवक भरुची वैष्णवों का केंद्र है यहा इन का एक मंदिर है सुना है की यहा गोकुल नाथ जी की हस्त लिखित ग्रन्थ अब भी है
गोकुल के कूप
वेसे कभी गोकुल के घर घर में कूप थे और अब भी है और कुपो का महत्त्व तो ब्रज में बहुत है क्योकि श्री कृष्ण ग्वाल वालो सहित यहा आकर गोपियों के साथ ठिठोली किया करते थे गोकुल में भी कुपो का बहुत महत्व रहा है यहा कर्ण बेध नामक स्थान पर प्रसिद्द कूप है कहा जाता है की यहा श्री कृष्ण का कर्ण छेदन संस्कार हुआ था इसी स्थान को महावन के चोधरियो के द्वारा गोस्वामी जी के मथुरा चले जाने पर उनको यहा बापस आकर इस स्थान पर रहने का आग्रह किया गया था घर घर कूप ब्रज की पहिचान भी है यहा रमण रेती के पास आज भी एक गोपी कुआ नामक स्थान है
गोकुल के कुण्ड
समस्त ब्रज में कुंडो का बहुत महत्व है और इनका एतिहशिक विवरण तो कुंडो से भी अधिक महत्त्व का है इनमे से अधिकारों पर बड़े संत महात्मा देवो के सम्बन्ध की कथाये प्रचलित है गोकुल में भी कुछ कुण्ड है जिनका विवरण इस प्रकार है
पूतना कुण्ड ~ कहते है की जब पूतना मैया श्री कृष्ण को नन्द भवन से उठा ले गयी थी तो उनके प्राण हरण के साथ आप यहा गिरी थी इस कुण्ड में केवल गौ घाट है यह गोकुल और बड़ी गौशाला के मार्ग के बीच परमहंस आश्रम की गौशाला के समीप है बर्तमान में इस धरोहर को सहेजने की सख्त जरुरत है इस के लिए राम श्याम ब्रज महिमा संसथान की भक्त समाज से सहयोग की उपेछा है
पतित पवन कुण्ड ~ यह गोकुल के बस स्टैंड पर स्थित है इसके छे सुंदर पक्के घाट है एक गौ घाट भी है सरकार के द्वारा इसका कई बार सोंदार्यीकरण कराया है यह कुण्ड गोकुल की शोभा है गोकुल की छात्र संघ नामक संस्था यहा प्रति वर्ष दीपावली पर दीपदान किया करती थी संस्था के बिघटन के बाद से यह बंद हो गया कहते है की यहा यसोदा मैया लाला के कपडे धोती थी पूर्व में इसकी बहुत रोनक थी राम श्याम ब्रज महिमा साँसथान की इस को गोद लेने की इच्छा है
कमल कुण्ड ~ यह कुण्ड प्राचीन राजा ठाकुर जी के बगीचे के समीप है यहा एक सुंदर पक्का घाट और गौ घाट है किन्तु अब इसको सहेज ने की भी जरुरत है पूर्व में इसमें कमल खिला करते थे जो ठाकुर सेवा के काम आते थे पूर्व में पुष्टि मार्गीय ब्रज यात्रा का यही पड़ाव होता था और बहुत से गोकुल निवाशी यहाँ स्नान ध्यान मल्ल बिधा आदि को यहाँ आते थे अब यह एतिहशिक दरोहर विलुप्ति के कगार पर है इसको सरछां की सख्त आब स्यकता है
सेवा कुंड ~ यह कुण्ड गोकुल महावन के कच्चे मार्ग पर रामलीला मैदान के समीप स्थित है इसमें अब जल भराव नहीं है किन्तु यह बहुत हि सुंदर तरीके से बनाया गया है जो इसके अबसेश देखने से यह ज्ञात होता है इसको बहुत नीचे तक खोदा गया है ऊपर चारो और पक्का घेरा है जिसके एक कुण्ड में उतरने की सीडिया है तत्पचात घाट है काश किसी ने इसका जीर्णोधार कराया होता यह गोकुल की बहुत सुंदर दरोहर है
गोप तलाई ~ यह गोकुल रमणरेती के कच्चे मार्ग पर स्थित है यह बहुत हि भब्य कुण्ड है इसमें चारो ओर पक्के घाट और गौ घाट भी है यह भी कई संतो की तपस्थली है और नाम से प्रतीत होता है की यह गोपालो का नित्य स्थान है वर्तमान में इसको भी सरछन की जरुरत है
गोकुल के टीले
गोकुल में बहुत से प्राचीन टीले है क्योकि यह मैदानी इलाका है इस कारण यहाँ टीलो के निर्माण में कुछ न कुछ ऐतिहासिकता भी है इस के आलावा यह टीले कई महँन संतो की तप स्थली भी है यहाँ एक मोहल्ले का नाम भी टीला पाडा है यहाँ के गणेश मंदिर के पीछे एक टीले में गोकुल वैराज के निर्माण के समय प्राचीन बस्तुये प्राप्त हुयी थी सायद यहाँ कोई बोद्धो का पवित्र स्थान रहा हो सकता था एक टीला कमल कुण्ड के समीप था रमणरेती के समीप मोरवाले मंदिर के बगीचे के पास भी दो टीले थे जिनमे एक एतिहशिक गोविन्द स्वामी जी का प्रसिद्द टीला भी था जहा राजा आसकरण और गोकुल नाथ जी संगीत की सिच्छा लेने जाते थे दूशरा नारद टीला था वर्तमान में यह भू माफिया लोगो के द्वारा खंड बंड कर दिया गया है यहाँ एक हरियल टीला नामक टीला है इसका सही नाम हरिहर टीला है इस नाम के सिद्ध प्रसिद्द संत यहाँ निवाश करते थे जिनके चमत्कारिक कार्य गोकुल में बहुचार्चित थे आप सत्य हि बहुत महान संत थे इनके पश्चात यहाँ इनके सिस्य ओजू बाबा निवाश किया करते थे ये अभिबदन में हरिहर सब्द का उच्च स्वर में उच्चारण किया करते थे यहाँ हरिहर बाबा की समाधी सुंदर शिव मदिर और आखाडा था गोकुल महावन के मध्य रमण रेती के समीप यह बहुत हि रमडिक स्थल था अब इसकी स्थिति अज्ञात है गोकुल के कुछ निवाशी कहते है पूतना विशाल सव के जलाने से भी यहाँ चार राख के टीले भी निर्मित हुए थे क्योकि इन की विशाल देह को काट काट कर चार गड्डो में डाल कर इनकी चिता जलाई गयी थी कहते है की महावन में निर्मित नव तहशील भवन ऐसे हि एक टीले पर बना है
गोकुल के वन
समस्त ब्रज वनों उपवनो की धरती है प्राचीन काल में यहाँ बारह वन चोवीस उपवन बताये गए है वर्तमान मे अधिकतम वनों के जगह बस्तिया बस गयी है गोकुल स्थित बनो का विवरण इस प्रकार है
देवला का वन ~ यह बन रमणरेती महावन के मध्य में स्थित था पुराने लोगो के अनुशार यहाँ हिंसक जानवर भी दिखाई देते थे
गोपाल पुर का वन ~ यह गोकुल और रावल गावं के मार्ग पर स्थित था यहाँ चन्द्रावली गोपी माँ चामुंडा के रूप में पूजित है
वृच्छ और वनस्पतिया ~ गोकुल और रमणरेती के मध्य पाराश पीपल नामक वृछ की चर्चा तो यहाँ के एक अंग्रेज अधिकारी ग्राउस के द्वारा अपनी पुस्तक में किया गया है वह लिखते है की यह बरछ यहाँ के अलाबा कही नहीं दिखता है इसके अतिरिक्त कदम्ब यहाँ की शोभा रहा है यह गोकुल में सभी जगह दिखाई देते है पतित पावन कुण्ड पर स्थित कदम्ब तो श्री कृष्ण लीला का अनुभब करता प्रतीत होता है धार्मिक स्थल होने के कारण बड और पीपल भी यहाँ बहुतायत में दिखयी देते है पिलु पापरी जामुन खिरनी खजूर बबूल सीसम फराश निम् इमली आदि के बरछ भी यहाँ बहुतायत में थे नागफनी आक धतुरा ग्वारपाठा सुदर्शन तथा कनेर भी यहाँ है करील झर बेरिया सड़क किनारे कास की झाडिया भी यहाँ है
बाग बगीचे
पूर्व काल के गोकुल के चारो ओर पुष्टि मार्गीय मंदिरों के उधान थे जिनका उल्लेख मंदिर के विवरण में किया जा चूका है अब इनमे खेती होती है गोकुल नाथ जी का बगीचा नाम मात्र को हि है क्योकि यह अन्य की तरह बिक्री नहीं हुआ है यहाँ एक बगीचा मथुरेश जी का भी था इसकी भूमि भी अब व्यक्तिगत संपति है गोकुल में एक मोहल्ले का नाम भी बाग बाला मोहल्ला है शायद इसमें भी कभी कोई बगीचा रहा होगा


बगीचिया
माहोलपुराने लोगो को व्यायाम कसरत का अधिक शोक था इस कारण गोकुल में बहुत सी बगीचिया है जहा लोग नियम से जाकर भजन ध्यान मल्ल बिधा सत्संग का अभ्यास करते है इन बगीचियो में सुंदर फुलवारी अखाड़े कूप और हनुमान जी महादेव जी के मंदिर बिधमान होते है दोहे कवित सवेयो का दोर भी यहाँ चलता था इस के कारण पारस्परिक मेल जोल प्रेम की अभिब्रधि यहाँ होती थी साथ हि साथ बड़े लोगो से छोटे लोगो को परंपरा का दान भी होता था
डंडी स्वामी जी की बगीची ~ यह मुरली धर घाट पर स्थित थी इसके अबशेष यहाँ अब भी बिद्धमान है यहाँ बम मार्ग के डंडी स्वामी जी महाराज विराजमान थे यहाँ राधा कृष्ण की मूर्तियों की सेबा बंगाली साधू किया करते थे
बिरजी सिंह की बगीची ~ यह अस्ट सखी घाट पर है यहाँ हनुमान जी का मंदिर है यहाँ समीपस्त मोहल्ले के लोग नित्य प्रति जाते है यह वर्तमान में भी यहाँ बगीची के रूप में स्थित है
चोगान गड की बगीची ~ गोकुल की यह सबसे श्रेस्ठ बगीची है यहाँ हनुमान जी का मंदिर है यहाँ दो अखाड़े है यहाँ उस्ताद श्रीधर जी की समाधी भी है यहाँ से गोकुल बैराज निर्माण से पहले यमुना जी का प्रवाह भी था यमुना किनारे महादेव जी का मंदिर हरी भरी फुलबारी थी यहाँ जन्मस्त्मी का दंगल भी नन्द किला समिति के द्वारा यहाँ होता है यह बगीची नन्द किला समिति के आधीन है पूर्व में इस बगीची की बड़ी शोभा थी किन्तु वर्तमान में बहुत कम हि लोग यहाँ जाते है
बजरंग गड ~ यह बगीची भी चोगान गड बगीची के समीप हि स्थित है यहाँ भी यमुना जी का प्रवाह था और घाट भी बना था यहाँ कशरत के सोकिनो की अपेछा बुद्धिज्वियो का आना जाना अधिक था यहाँ पर रहने वाले महात्मा यशोदा नंदन जी भी बुद्धि जीवी हि थे यहाँ एक छोटी सी बाबड़ी भी थी
झाजन गड जी बगीची ~ यह बगीची परहंस की गौशाला के सामने चोगान गड की बगीची के रस्ते में है यहाँ रहने बाले साधू झाज बजा कर भजन किया करते थे शायद इस कारण इस बगीची का नाम झाजन गड हुआ होगा
जयदेव गड ~यह बगीची जगन्नाथ घाट पर स्थित है यहाँ एक कोठरी कुआ और महादेव जी का मंदिर है इस अखाड़े पर गायन बाडन की प्रधानता रही है यहाँ उस्ताद राधा कृष्ण जी और विहारी लाल जी उस्ताद के कुशल निर्देशन में स्वर ताल की साधना होती थी इस अखाड़े में परंपरागत सामान्य भाषा की भगत सैली में प्रसीछन दिया जाता था
गोकुल की धर्म शालाये और तिवरिया
वेसे तो गोकुल बहुत छोटी बस्ती है किन्तु यहाँ कभी कभी इतने सर्धालू आ जाते है की कही कोई ठहरने को जगह नहीं मिलती यहाँ पंडा जी तीर्थ यात्रियों से कहते है की गावं छोटो है नाम बड़ो है इस कारन पूर्व से हि यहाँ बड़े बड़े धनि मानि सेठो ने यहाँ बहुत सी धर्मशालाये बनबाई है वर्तमान में इनमे से अधिकतर निज आवश है और नए नए गेस्ट हॉउस बन गए है किन्तु कुछ धरम शालाये यहाँ है जिनके बिना सायद इस नगर का कम नहीं चल सकता है यहाँ कुछ धर्म शालाये है और जन सेवा में आज भी सलंग है जो निन्म है
करशन दास नाथा की धर्म शाला यह धर्म शाला गोकुल के भगबान भजना श्रम के समीप स्थित है वर्षो में यहाँ अनेक बड़े बड़े कार्यक्रम हुए यह सब के लिए उपुक्त सावित हुयी सबके सब धार्मिक समोरोह विवाह समारोह सहित मेडिकल केम्प आदि सब यहाँ होते है बड़ी बड़ी भागवत कथा समस्त नगर के भोजन इसमें सारे काम सहज में हि होजाते है नर्शिंग भवन यह धर्मशाला भी बहुत समज को सेवा के लिए प्रेरित थी और आम आदमी और गरीव् तीर्थ यात्रियो को सहज में प्राप्त थी इनके आलावा खड़ायता भवन नामक एक धर्म शाळा में वैष्णवों को स्थान मिलता है यह भी वैष्णव समज में बहुत प्रसिद्द है
तिवरिया ~ प्रमुख धार्मिक तीर्थ स्थल होने के कारण यहाँ कई धनि मानि सेठ साहुकारो ने निर्धन तीर्थ यात्रियों और संतो के रेन बसेरे रूप में इन को बनबाया गया था यमुना जी के तट बाजार गौशाला और पतित पवन कुण्ड मुरलीधर घाट आदि पर यह बिधमन थी किन्तु गोकुल के हि बड़े बड़े सज्जनों ने इनको स्व संपत्ति मान कब्ज़ा कर लिया है और वर्तमान में यह गरीव यात्री निवाश यहाँ के धन कुवेरो की मिलकियत है और इन के लिए गोकुल में अब कोई भी व्यस्था नहीं है
गोकुल की गौशालाए
नन्द बाबा के समय उन के पास नो लाख गौ हुआ करती थी और गोकुल (ब्रज) में कहावत है की" मथुरा की लड़की गोकुल की गाय करम फुट होय तो अंत कहु जाये" पूर्व में गोकुल में बहुत सी गौशालाए थी जितने भी मंदिर थे उतनी गौशालाए तो थी हि सभी के घरो में कम से कम एक गाय तो जरुर पली जाती थी किन्तु वर्तमान में यहाँ सबसे बड़ी गौशाला मथुरा सादाबाद मार्ग पर है इस तिराहे को गौशाला तिराहा हि कहा जाता है इस गौशाला में वर्तमान में भी कई हजार गौए है और इनकी यहाँ सारी व्यव्स्था आनंद से होती है इस गौशाला की स्वयं की गउ चर भूमि और खेती की भूमि है जिसमे बिना उर्वरिक के अनाज पैदा किया जाता है जिसकी यहाँ से बहुत मांग है इस का सञ्चालन मुंबई का एक ट्रस्ट करता है इसका नाम श्री मद बल्लभ गौशाला है दुशरी गौशाला गोकुल के नन्द द्वार के समीप
श्री कृष्ण गौशाला नाम से बिध् मान है यह एक भगवती गोकुल निवाशी की निजी संपत्ति है यहाँ भी ३० से ४० गौए रहती है यहाँ इनकी व्यस्था सही प्रकार से होती है गोकुल के नन्द चोंक के समीप ब्रजेस्वर जी के मंदिर के पास पहले बहुत सी लड़ामनिया थी जिनमे बड़ी गौशाला के द्वारा चारा डाला जाता था और बहार से आने वाले तीर्थ यात्री भी यहाँ पर्याप्त मात्र में चारा डालते थे यहाँ एक प्रकार से गौ विश्राम स्थल था गोपाअस्टमी के दिन यह नन्द चोंक में गौचरण होता था रमण रेती की ओर से कृष्ण बलराम के स्वरूपों की झाकी आती थी जिनके हात से गौओ को गुड के लड्डू खिलाये जाते थे उस दिन गयो को भी खूब सजाया जाता था बहुत हि मनोरन द्रश्य होता था यह आज भी गोपअस्टमी को गोकुल में बहुत आनंद होता है
गोकुल की परिक्रमा
ब्रज में तीर्थ स्थलों की परिक्रमा का बहुत महत्व है सवसे अधिक गोवर्धन की परिक्रमा जन मानस में बहुत प्रसिद्द है मथुरा और वृन्दावन की भी परिक्रमा लगायी जाती है इसी प्रकार गोकुल वाशी कभी कभी गोकुल की परिक्रमा लगाते है जब कोई ग्रहण आदि होता है तब यहाँ के लोग बाध्य यंत्रो सहित गायन बादन करते हुए परिक्रमा लगाते है गोकुल की परिक्रमा का ब्यास ३ कोस यानि ९ किलोमीटर बताया जाता है यह परिक्रमा ठकुरानी घाट से सुरु होकर मोर वाली हवेली मंदिर अस्टसखी घाट मुरलीधर घाट बजरंग गड चोगन गड परमहंस की गौशाला से होति हुयी कमल कुण्ड रामलीला मैदान गोप तलाई गोपि कुआ रमण रेती रशखान समाधी बल्लभ घाट गोपाल घाट से होती हुयी उत्रेस्वर घाट से यशोदा घाट और ठकुरानी घटा पर समाप्ति होती है कंतु वर्तमान में भी गोकुल की परिक्रमा का कोई स्थायी मार्ग नहीं है न हि यह पक्का है इस बिषय में यहाँ के निवाशियो को गंभीरता से विचार करना होगा
गोकुल के सात द्वार
गोकुल में पूर्व में सात द्वारो का निर्माण हुआ है यह गोकुल की शोभा है प्रथम नन्द द्वार यह बस स्टैंड के समीप गोकुल बस्ती में प्रवेश करते हि है द्वितीय कृष्ण द्वार यह गोकुल के नन्द चोंक में स्थित है तृतीय द्वार बलराम द्वार यह जय गोपाल लाल जी और प्राचीन गिरिराज जी के मंदिर के समीप है चतुर्थ यसोदा द्वार यह गोकुल नाथ जी मंदिर के समीप है पंचम द्वार बशुदेव द्वार यह गोकुल के दछिन में रमणरेती के मार्ग पर है यहाँ से उत्रेस्वर घाट का मार्ग भी है इसके उपरान्त अन्य द्वारो के यहाँ अब अबशेष मात्र है
गोकुल के सामाजिक व्यसन ( आदते)
हार समज में कुछ न कुछ विशेष व्यसन लोगो को जुड़ा होता है गोकुल भी इन व्यसनों अछूता नहीं है भंग ठंडाई का व्यसन तो गोकुल हि क्या हमारे पुरे व्रज से जुड़ा हुआ है पुराने समय में तो साय होते हि घरो पर बहार च्वुतारो पर और बगीचों में बगीचियो में भंग ठंडाई का पट्ट लग जाता था इसके अतिरिक्त स्नान ध्यान पूजा पाठ कुस्ती कसरत दूध दही रवडी पेडा बर्फी लड्डू मठरी मोहन थार आदि के चकाचक सेवन का व्यसन भी गोकुल बसियो में था जो अब भी है आज भी यहाँ के लोग ओम चाचा ( गोकुल निवाशी मंदिर के जल घडिया जी ) की बेसवर प्रतिछ करते और आपस में पूछते अरे फ़लाने चाचा आयो का तो दुशरो बतावे गो नहीं भईया नहीं आयो और वो जेसे ही आते है सब उनको घेर लेते है और चाचा मोय मठरी दियो दुशरो बोले मोय दो पुड़ी देदे कन्हया तू लेगो का तिशरो बोले हा मोकु लेले दो पूरी में भी उन में सामिल होता हु वह क्या पूरी सुद्ध देशी घी की जो वर्तमान में सबसे सुद्ध मिला साग के सग सत्य बताऊ उस साग में न तो नॉन अधिक होता है न मिर्च फिर भी आनंद सत्य कहु लीखते में मन ललचाय गयो है सामने अभी होय तो में खा लौ ....और देखते हि देखते उनका मॉल समाप्त हो जाता कोई रह जाये कोई ले जाये पूर्व में तो बहुत मंदिर थे तो मॉल भी बहुत आता था तो साय कु पट्ट लगाये के आप सभी चकाचक करते थे पुराने लोग ४- ५ किलो रवडी को सहज में हि खा जाते थे उस पर पूरी आदि नमकीन भी लेले ते थे चकाचक डंड भी पेले जाते थे सब स्वथ सबल थे
कुछ लोग यहाँ कबूतर बजी का सोक भी यहाँ रखते थे और कुछ तो अब भी यहाँ यह सोक करते है पूर्व में तो इनके कबूतरों की उड़न प्रतियोगिता भी यहाँ होती थी बहुत हु हॉलला होता था उस समय सव की नजर आसमान में होती थी मोर वाले मंदिर में भी कबूतर पाले जाते थे कुछ लोग तितर भी लड़ते थे एक सज्जन मेडे भी पालते थे सुना है लडाते भी थे किन्तु गोकुल में यह बहुत कम देखा गया था ये काली खेलने में बेजोड़ थे और प्रसिद्द पटे बाज भी थे पटे बाजी के उस्ताद बिहारी लाल जी भी यहाँ थे आप यहाँ के युवको को पटे बजी भी सीखाते थे आप बहुआयामी ब्यक्तित्व के स्वामी थे उन्होंने परमहंस की गौशाला में पटे बजी की बहुत दिनों तक सिच्छा दी किन्तु यह अधिक दिनों तक नहीं चल पाया पतंग बाजी भी गोकुल में बहुत शोक था पतंगों की प्रतियोगिता भी होती थी बहुत धामाँल होता वो मारा ,बोकाटा फलाने की फटी यह सब्द यहाँ ग्रीष्म काल में गंगा दशहरा को को याहा पतंगे उड़ाई जाती है अब तो इसका भी बहुत कम लोगो की इस के लिए समय है अब प्रतिककात्मक हि यहाँ दशहरा मनता है वो उत्साह पूर्व जैसा लोगो में नहीं है सतरंज के भी यहाँ बहुत महान खिलाडी हुए जिनके पास मथुरा के अंग्रेज जिला अधिकारी तक सतरंज खेलने आते थे आप इतने इस खेल के इतने उस्ताद थे की मोहरों की स्थिति सुनकर हि अकाट्य चाल बताते थे आपने इस खेल के बारे इतना शोध किया की इन के घर में सतरंज की चालो के नक्से भी थे जो हस्त लिखित थे इनके अलावा गोकुल में सतरंज के बहुत से रणबाकुरे हुए पहली बार गोकुल नाथ जी के मंदिर में सत्राज की प्रतियोगिता हुयी इनके आलावा यहाँ के बचपन में खेले जाने वाले खेलो में यमुना जी और यहाँ के कुंडो में बुर्जो से कूद कूद कर तेरना कबड्डी आदि खेल खेले जाते थोड़े बड़े होने पर बगीची को प्रस्थान और यहाँ मानवता का निर्माण होता था यहाँ के लोग बन भोजो का व्यसन भी पालते थे मित्र मंडल मिला मिलकर गोकुल की प्राकृतिक संपदा की गोद में जाकर आप बनाते भोग धराते प्रसाद पाते है कभी कभी तो यहाँ बहुत मीठे मीठे झगडे बहुत लम्बे हो जाते और सत्य हि इन बन भोजो की तो बात हि मतकरो यहाँ तो सबसे ज्यदा आनंद है यहाँ इस तरह ब्रज वाशियों के साथ रहकर कोई भी यह दिन भूल नहीं पायेगा मेरा यह पूर्ण बिसबास है
गोकुल के उत्सव त्यौहार
नन्द महोत्सव ~ वेसे तो गोकुल में हर दिन महोत्सव किशी न किशी मंदिर में होते हि रहते थे किन्तु नन्द महोत्सव यहाँ के लिए बहुत महत्वपूर्ण है इस उत्सव के दीन गोकुल की शोभा बहुत सुंदर जाती है नवमी के दिन यहाँ कृष्ण जन्म के यहाँ ज्ञात होते हि ब्रज वाशियों की प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा कहते है की " आज बर्फी सी ब्रज नार भई लडुआ से गोप और गुजिया से ग्वाला पेडा ते प्यारे भये बलराम जी रस की रस रोहानी रूप रसाला नन्द महीप भये नामकीन गोपी ग्वाल सब गरम माशाला ...." गया है किशी कवी ने यहाँ की उस स्थित की झलक को दिखाया है और वर्तमान में तो यह गोकुल की जान है पूर्व में मंदिरों से विग्रहो को बगीचा आदि को पध्राते समय अनायाश हि यहाँ मेले लग जाया करते थे अव तो नन्द उत्सब को भी बहुत महनत करनी पड़ती है इस की दो बार सेवा अबसर" राम श्याम ब्रज महिमा संसथान ट्रस्ट" को भी मिला वेसे यह नन्द भवन समिति द्वारा किया गया जाता है नन्द भवन से हि शोभा यात्रा निकलती है और नन्द चोंक के समीप चोकी नमक स्थान पर यह होता है सन २००८ में यह बहुत वर्षो में इतना सानदार हुआ की इस के गोकुल वाशियों के लिए इसके मायने बदल गए यहाँ इस दीन सभी पुष्टि मार्गीय वर्तमान मंदिरों में भी नन्द उत्सब के दर्शन खुलते है पूर्व में नन्द उत्सव के समय मंदिर के गोस्वामी मुखिया जी अन्य सेवक गण नन्द यसोदा गोपी ग्वालो का वेश धारण किया करते थे खूब लडुआ लुटते है गोकुल में उस दिन
नन्द भवन समिति इस उत्सब को सर्व जनिक रूप से मानती है यही अधिकतम व्यव्स्था करती है गोकुल के सभी द्वारो को सजाती है पुरे नगर में बंदरबांन बधबाती है मथुरा की प्रसिद्द नफीरी यहाँ बुलाई जाती है कुछ सामाजिक मंडल मदत करते है उस समय यहाँ सारे विश्व की मिडिया होती है साय को बजरंग गड पर दंगल होता है जहा बड़े बड़े पहलमान कुस्ती करने व दर्शन को आते है नन्द उत्सव के बाद ठाकुर जी की छटी बाले दीन भगवान को पूतना नन्द भवन से उठाकर ले गयी थी इसलिए यहाँ पूतना मैया का प्रतीकात्मक पुतला बनाकर पुरे नगर से निकाशी निकालकर पूतना कुंड जाकर जलाते की प्रथा यहाँ थी यह अब बंद हो गई है इसके अलावा गौओ के महत्त्व के कारण गोपाअस्टमी का त्यौहार यहाँ धूम धाम से मनाया जाता है नन्द बाबा के समय लाल कि छटी तो पूतना ने मानाने नहीं दी थी इस के बाद २१ वे दिन गुग्ध पान संस्कार हुआ था जिसमे भगवती योगमाया स्वरुप भगवती पूर्ण माशी ने लाला कु चन्द्रमा से चमकते धवल संख से धात्री बनकर दुग्ध पान कराया इसके अतिरिक्त नामकरण संस्कार भूमि स्पर्श संस्कार अन्न्प्रसन संस्कार गोकुल में हुआ था इन उत्सवो की शोभा आप इस साइट में आप पा सकते है इनके अतिरिक्त सम्पुरण हिन्दू धर्म के त्यौहार यहाँ परंपरागत रूप से मनाये जाते है होली और श्री कृष्ण के समबन्ध के कारण होली भी बहुत धूम धाम से मनाई जाती है सभी मंदिरों में फगोत्सब होते है नन्द भवन से श्री नन्द लाल को मुरली धर घाट पर पधराया जाता है नाचते गाते सेकड़ो सर्धालू और गोप ग्वाल और गोपिया छड़ी लेकर सवारी में पीछे चलती है जोभी उन के सामने होता है उसको छड़ी से हलके से मरकर वह हुरागा खेलती है यह गोपी और ग्वालो के परस पर प्रेम के द्वापर को यहाँ दिखाने की कोशिश करती है मुरली धर घाट पर दर्शन खुलकर यहाँ प्रथम हुरंगा होता है इस के बाद होली खेली जाती है इसमें किशी को बक्सा नहीं जाता यहाँ प्राकृतिक केसू के फूलो का रंग उपयोग में लाया जाता है यहाँ मेने यह भी देखा है की इस प्रसाद की कुछ बूदो के लिए लोग स्वयं हि आगे आने लगते है उस समय यहाँ आने वाले इस आनंद के लिए हि तो यहाँ आते है होली वाले दीन राजा ठाकुर मंदिर से सार्वजनिक होली को जलाया जाता है जिसकी गोकुल के बहुत बड़े हिस्से में मान्यता है कुछ हिस्से में गोकुल नाथ जी के मंदिर की होली की मान्यता है यह गोपाल घाट पर जलाई जाती है से अग्नी लाकर अपने घरो में होलिका दहन करते है इसमें जै भुनकर इन के परस पर लेनदेन सहित गले लगते है बधाई देते है फिर इनकी असली होली शुरू होती है मंदिरों में रंग गुलाल उड़ाते हुए डोल की झाकी होती है वेसे तो मंदिरों में पुरे फागुन माश गुलाल उड़ता है ठाकुर जी के सामने श्रंगारिक राशियों का गायन होता है धुलेडी वाले दिन मंदिरों के बहार गोकुल गावं में उन्मुक्त हाश्य विलाश चलता है बच्चे बड़े बड़े सभी के बिच की मर्यादाये डह जाती है सभी मंदिरों में माजूम नामक भंग की मिठाई प्रसाद स्वरुप दी जाती है इस भोग की कृपा से यहाँ माहोल और भी आनंद मय हो जाता है मेली चोपाई का निकलना सुरु हो जाता है हाथो में ढोलक मंजीरा ढपली लिए हुए सभी बुजुर्गो के नेतृत्व में यह जुलुश रसिया गाते हुए गोकुल की गली बाजारों में जाते है इसके पछात मंदिरों में रसिया गायन किया जाता है सर्व प्रथम गोकुल नाथ जी के मंदिर में बड़े आनद से रसिया गए जाते है तत्पश्चात राजा ठाकुर में अंत में नन्द भवन में से होकर यमुना जी के घटो पर सरिया गायन होता है दोपहर १२ बजे सभी यमुना जी में स्नान को जाते है साय हुरंगा यहाँ के बाग मोहल्ले में होता है और बसोडा तक स्थान पारीबर्तित होते कही न कहि गोकुल में होता रहता है
बसोड़े के दिन सीतला( नगर देवी ) की पूजा होती है इस का यह बहुत महत्व है इस दिन साय को यहाँ पूर्व उजरी चोपाई निकलती थी जो होली की मेली चोपाई की तरह घर घर गली जाकर रसिया गायन करती थी इसमें तरह के स्वांग रखे जाते थे जिनमे प्रमुख रूप सै रावलिया नामक परंपरागत पात्र को सजाया जाता इन की सजावट में गोटेदार दुपट्टे सर पर कागज की नुकीली टोपी हाथ में मुशल होता था जो सभी के द्वार पर जाकर मुशल बजाकर गायन करता " यह फलाने की घर वारी जाकी फलाने ते है यारी हस के कहु बुरो मत मनो यह रावलिया की है सारी ता ता ता थई थई थई नन्द लाला द्वारे फिर आयो " कहते हुए मुशल को दरबाजे पर बजाते आगे चलते जाते किसी मंदिर या देवालय के द्वार पर जाकर रावलिया अपनी हि तर्ज में यहाँ की विरुदावली गाते इस प्रकार यहाँ की होली की समाप्ति होती है
गोकुल के संत महात्मा
परम हंस बाबा ~ आप हरियाणा प्रान्त के निवाशी थे भगवान राम चन्द्र के अनन्य सेवक थे प्रभु प्रेरणा से गोकुल में दर्शन करने पधारे और
गोपाल घाट पर श्री कृष्ण की गौचरण लीला का सछात दर्शन कर आपको परमा नन्द की अनुभूति हुयी आप का कद लम्बा मुख मंडल तेजस्वी था आप बहुत हि करुना बान सिद्ध पुरुष थे आपके बारे में गोकुल में अनेको कथाये प्रचलित है कहा जाता है की एक बार एक सेठ को गर्दन की बीमारी थी वह बहुत समय तक बाबा से मिलने का प्रयाश करता रहा किन्तु इन के सहयोगियों ने इसको आपके पास नहीं जाने दिया एक बार यह चुपचाप बाबा के पास पहुच गया और व्यथा कही बहार आया तो स्वयं ठीक हो गया था और बाबा की गर्दान में रोग हो गया था इनके भक्त जन जानते थे की अप किशी को निराश नहीं करते है इस लिए उसको उनके पास नहीं जाने देते थे यह बकाया इनकी अंतिम समय का हि है म्रत्यु के पश्चात भी आपके दर्शन गोकुल में कई बार हुए बताये जाते है गोकुल निवाशी चित्रकर जगन्नाथ जी ने अपनी स्मरति से आपका एक चित्र बनाया था जो आज भी गोकुल के कई घरो में बताया जाता है
श्री हरी हर बाबा ~ आप अत्यंत दुर्बल काया वाले किन्तु उदीप्त मुख मंडल से सुसोभित थे केवल एक सफ़ेद कोपीन धारण किये कंधे पर एक छोटा सा सफ़ेद बस्तर डाले रहते थे प्राचीन परमहंस की गौशाला में एकांत जीवन व्यतीत किया करते थे जो केवल जन्म अस्टमी के अवसर पर हि नन्द लाला के दर्शन को निकलते थे कभी कभी तो भीड़ में कब आये कब चले गए पाता नहि लगता था आप कई भाषाओ के विद्वान थे किसी भी बिषय की बरता हो इनका अगाध ज्ञान स्पस्ट द्रस्टी गोचर होता था अंग्रेजी की पुस्तक लाइट ऑफ़ एसिया की चर्चा हो या कालिदास जी की सकुन्तला की आप को सब कुछ कंठस्थ था आप के बिवेचना करने पर बहुत आनंद होता था आप इतनी पुराणी पुराणी घटनायो का विवरण किया करते थे की आप की उम्र का सहज ज्ञान हो पाना सम्बब्हब नहीं था दूर दूर से बड़े बड़े धनि मणि सेठ साहूकार बड़े बड़े उच्च शाशकीय पदाधिकारी आप के दर्शन को आते रहते थे किन्तु आप ने किसी से कभी कोई याचन नहीं की
स्वामी श्री करुना नन्द जी (मोनी बाबा) ~ आपका जन्म सन १९२४ में केरल में हुआ था आपका गुरु स्थान गणेश पूरी मुंबई में है भगवाल नित्य नाद जी आपके दादा गुरु थे आप ताप साधना हेतु गणेश पूरी से सीधे सन १९५३ में गोकुल पधारे १९५६ तक यहाँ रह कर आप २०से २५ दिनों के लिए वृन्दावन चले गए जहा रंगजी मंदिर और कत्यानी माता के पीठ के समीप नीम के दो ब्रछो के बिच में रहे ४-५ दिन तक निराहार रहे बिरक्ति हुयी तो पास के धन को यहाँ फेकने लगे लुट हुयी और आपने यमुना जी में कूदकर प्राण त्यागना चाह तभी इन के गुरुदेव का इनको गोकुल पहुचने का आदेश प्राप्त हुआ गोकुल में आने पर इनको रमण रेती के तत्कालीन स्वामी हरिनाम दास जी ने आपको वही निवाश करने को कहा किन्तु एक राधे राधे नाम के संत इनको गोकुल में वर्तमान स्थान तक पंहुचा गए और यही निवाश करने को कह गए
श्री यमुना जी में आप की बहुत सरधा थी आप यमुना जी से आज्ञा लेकर हि कही आते जाते थे आपने यमुना जी की छबि को अपने गुरु जी के श्री विग्रह के समीप पधराया वह आज भी यहाँ इनके आश्रम में बिधमान है यहाँ पर स्थित एक टूटी फूटी कोठरी में आपने तप किया यहाँ बहुत से विसेले जंतु भी यहाँ घूमते थे आपने उस कोठारी के फ़र्स पर एक वेदी के आकर का चबूतरा बनाकर उसको गोमोप्लिप्य कर उसके सामने बैठकर वर्षो आपने तप किया मोंन ब्रत तो आपने आरम्भ से हि स्वीकार्य कर लिया आपको भिक्छा हेतु किसी ने कही जाते नहीं देखा किन्तु इन के भक्त आपको घर से तेयार भोजन दे जाया करते थे कभी कभी मंदिरों का महाप्रसाद भी किशी न किशी माध्यम से बाबा तक पहुच जाता था
सन १९५६ तक का आपका साधना काल महावली पुरम गोकर्ण जी गोवा पल्गी तमिलनाडु आदि स्थानों पर व्यतीत हुआ पुनह सन १९७१ में आप गोकुल पधारे तब तक आपका आश्रम यहाँ भब्य रूप ले चुक था आप की ख्याति सर्वत्र फेल चुकी थी आश्रम तपोवन हो गया सत्संग प्राथना आरती का क्रम सुरु हुआ आश्रम तक पक्की सड़क बनी भण्डारो का आयोजन होने लगा सत्य आपके यहाँ विराजने के कारन गोकुल गौरवान्दित हुआ और अनेक लोगो पर आपकी कृपा हुयी वह वर्तमान में भी इन को याद कर कर गुरुदेब को याद करते है इनको भगवान मानते है कइयो की तो आपने जीवन रछा भी की सब कुछ सही चल रहा था की आश्रम की बहुत प्रसद्धि होगई थी भक्त जन परंम संतुस्ट थे तभी नियति के आमंत्रण के आने पर आप थोड़ी सी अस्वस्थ होने पर हि यह महान बिभूति दिनांक ३ दिसंबर १९९५ को महा समाधी लेकर आश्रम में हि समाधिस्थ हो गयी उस दिन इनके भक्तो में सबसे अधिक छोटे बच्चे बहुत रोये बड़े सायद समझ दार थे इसलिए नहीं रोये किन्तु यह सत्य है की उस दिन गोकुल में एक युग का अंत हुआ था आज भी उनके भक्त गन आश्रम में निरंतर सेवा में लगे है और वर्तमान में तो आश्रम का करोडो की लागत से पुनर निर्माण किया जा रहा है हिन्दू रीती के अनुशार आश्रम की नीव में सर्प आदि के जोड़े रखे गए है वह भी लाखो के है मूल मंदिर को छोड़कर सब स्थानों को भब्य रूप दिया जा रहा है
गोकुल के पण्डे
हार तीर्थ स्थान के हि भाती गोकुल में भी पंडो की बहुतायत है यहाँ के अधिकतम निवाशियो की आजीवका पुरोहिती से हि चलती है यहाँ दो प्रकार के पण्डे है एक वह है जिनपर कोई निजी यजमानी नहीं है और यह यहाँ सीधे आने वाले यात्रियों को यहाँ का महत्व समझा कर दर्शन कराते है और दछिना स्वीकार्य करते है यह एक गाइड की भाति उनका मार्ग दर्शन करते है ये लोग सुसिछित तो बहुत कम है किन्तु अपने कार्य में बहुत निपुण है इन की एक कूट भाषा भी है जो इनके आलावा और किशी को समझ नहीं अति है इस कार्य से होने वाली कमाई से हि यह अपना नित्य जीवन यापन करते है इन की एक सभा पंडा सभा नाम से थी जो अब नहीं है
दुशरे प्रकार के पण्डे इन पंडो कही अधिक संपन्न है इनके परंपरा से चले आ रहे यजमान है जो देश विदेश में रहते है किन्ही विशेष स्थानों के नाम से यहाँ के ये पण्डे पहचाने जाते है जैसे बीकानेरी पंडा सिन्धी पंडा आदि इनके पास परमपरा से चली आ रई यजमानो के नाम पते वाली हस्त लिखित बहिया है और नयी बहियों का यह लेखा यह निरंतर करते रहते है किस यजमान का परिवार गोकुल में कब आया यहाँ कोन सा मनोरथ किया उनके साथ कोन कोन से रिश्तेदार आदि थे यह सब बाते यजमानो से पूछ पूछ कर लिखते है वर्षो बाद उस परिवार के किशी सदस्य के गोकुल आने पर यह सब उसे बचाते है और वह इन को अपना पंडा स्वीकार्य कर लेता है और स्वयं के सारे विवरण भी लिखवाता है इन के पास यजमानो के कई पीडियो का हिशाब होता है जो स्वयं में बहुत नयी पीडी के यजमानो के लिए आनंद का देने वाला होता है वेसे यह अपने यजमान के ब्रज की ब्रज यात्रा में सच्चे मित्र की भाती सम्पूर्ण व्यस्था करते है और उन्हें यहाँ प्रेम पूर्वक रखते है इसके बदले यह लोग इनके घर बन बाते है बेटियों का बिवाह करते है वर्तमान में तो यजमानो की मदत से यहाँ के कई पंडो के भब्य गेस्ट हॉउस है इन पंडो को यहाँ गौर कहा जाता है इनमे से अधिकतर सभ्रांत व्यक्ति है
गोकुल की कुछ अलमस्त बिभुतिया
वर्तमान में प्रोद्योगिकी और परंपरा के युद्ध के कारण गोकुल में बहुत कुछ बदल गया है पूर्व में कुछ लोग यहाँ पर थे जो मस्ती के सनातन आवश तो थे हि इनका आचार विचार बोल चाल भेष भूषा और चाल चलन से गोकुल को उसका असल रूप देते थे और सहज में जन मानश को प्रेरणा भी देते थे यु तो यहाँ के हार व्यक्ति को सुबह से अनेको बार भगवत्स्मरण करना पड़ता है चाहे यह किसी तीर्थ यात्री को यहाँ के मंदिरों के दर्शन करना हो या परस्पर अभिबादन करना इस प्रकार धीरे धीरे यह इनकी अंतर चेतना पर यह लिख जाता है और यह नीद में भोजन के उपरांत उबासी लेते समय सहज हि यह नाम लिया करते है यह ब्रज की सर्व उत्तम विसेषता है इन से भी भिन्न कुछ लोग अपने हिरदय की बात को सब्द देते है व्यबहार देते है उनका यह नाट्य जीवन की प्रेरणा होता है
नित्य लीलास्थ गुरु कन्हईया लाल जी ~ आप मथुरा से गोद आकर गोकुल में गोकुल नाथ जी की गाधी पर विराजे आप अत्यंत रसिक कवी विनोदी और अभनेता भी थे गोकुल में रहकर आपने सर्वत्र धूम मचाई आपने ब्रज भाषा के काव्यो सहित अनेक स्वाग और लिलायो की रचना की और मर्यादा को तोड़कर इन में अभिनय भी किया अन्य बहूत से गुनि जन इनसे मुक्त हस्त से पुरुस्कार पाते थे आप ने यहाँ यसोदा घाट के समीप उनकी नाट्य शाला थी एक बार उन्होंने अपने नाटक में रेल भी चल्बयी थी वर्तमान में भी आप के नाम से यहाँ स्कूल चलता है
ज्योति स्वरुप जी ( ज्योति मुल्ला जी ) ~आपका काफी लंबा कद गौर वर्ण मस्तक पर तिलक बगलबंदी धोती धारण किये यह हात में छोटा सा दंड लिए रहते थे और गोकुल नाथ जी मंदिर और ठकुरानी घाट पर मिला करते थे यह बड़े हि उच्च्च स्वर में बिना किशी साज के " हरी के भजन सुनो दो चार हरे हरे हरे जी हरे हरे अंत समय जब आबे जब भईया पाटी से लग बैठ लुगयिया पूछेगी यह बारम्बार किस पर छोड़ चले भरतार हरे हरे जी हरे हरे '" जेसी मानव जीवन की चेतावनियो को सुनते थे इन की बाते सुनकर सबको बेराग्य होता था जब आप बाज़ार से निकलते थे तो उच्च स्वर में कहते जाते घट रहि है लाला " उमरिया घट रही है ममता बढ रही है " यह सब्द इनकी पहिचान था आप हस मुख तो थे हि बड़े सहन शील भी थे आपके जीवन काल में हि होली में आप की सव यात्रा निकली जाती थी आपने इस का कभी बिरोध नहीं किया और जीवन भर जन मनश को सत्य मार्ग दिखाते रहे
गोपाल जी ~यह महानुभाब बिरक्त होकर चोगन गड पर रहा करते थे अप चलते फिरते " हा कन्हेया कहा मिलेगो गोविन्द चरनार बिन्द गाही रे " सब्द का उच्चा रण किया करते थे संध्या काल में यमुना जी की स्तुति बड़ी भाव पूर्ण किया करते " हम लायी श्याम सरण मैया की तेरे चरणों में मैया लगो री ध्यान " गया करते
राधा कृष्ण जी ( नत्थो रंगीले ) ~ आप यहाँ मनशुखा के नाम से पहिचाने जाते थे ऊपर से निचे तक रंग विरंगे बस्त्र धारण करके आखो में काजल लगाये हाथ में लकुटी और लोटा मस्तक पर चंदन फोटा तिलक सर पर चमक दार टोपी बगल में डोरी से बधा बटुआ कमर और कंधो में इकलाई सजाकर गले में सोने के कठ्ले के साथ बहुत सी पवित्रा और अन्य मलाओ को आप धारण करके हात में घुग्रूरु जड़ी लाठी लिए रहते इस भेष में जब वो यात्री के सामने ठुमका लगते तो छबि देखते हि बनती थी भंग वह सुबह से नित्य छानते थे छानते समय गया करते " हरी हरी फुदकती डोल जय जय श्री गोकुलेश लाडू पुड़ी मोकुलेश" आप को गोकुल के बस स्टैंड यमुना किनारे घाट बाजारों में प्राय देखा जाता था
माखन पे चोट ~ आप बुजुर्ग किन्तु स्वस्थ और मस्त नंग धडंग बदन दात तो दो चार हि सेष थे इनके आप ब्रज राज के पेडे बनाकर बेचते थे बाज़ार में बैठे बैठे धुन आने पर उच्च स्वर में गाने लगते "माखन में चोट उडावे री यसोदा तेरो लाला " तो बस्ती में आबाज गुजने ल गति
गोकुल में ऐसे अनोखे व्यक्ति बहुत से हुए है कुछ अब भी है जिनका व्यक्तित्व और क्रिया कलाप जनसाधारण कुछ हट कर या सर्वथा भिन्न था या है और इस कारन से इनको विशेष नाम भी प्राप्त हुए है
~ वर्तमान गोकुल~


नन्द उत्सव में विराजमान श्री ठाकुर जी की झाकी
नन्द उत्सव में विराजमान श्री ठाकुर जी की झाकी
नन्द उत्सव में विराजमान श्री ठाकुर जी की झाकी
नन्द उत्सव में विराजमान श्री ठाकुर जी की झाकी
नन्द उत्सव में उल्लाहस के आनंद में गण
नन्द उत्सव में लुटाने का प्रसाद
नन्द उत्सव में लुटाने का प्रसाद
नन्द उत्सव ने नाचते गाते सर्धालू
नन्द उत्सव ने नाचते गाते सर्धालू
नन्द उत्सव ने नाचते गाते सर्धालू और प्रसाद के झोली फेलाते भक्त गण
नन्द उत्सव में के जन्म की ख़ुशी में लुटाने को सामिग्री लाते मनसुखा और ग्वाल वाल
करिक्रम को अपने दर्शको के लिए प्रसारित करते सम्पूर्ण विश्व में मिडिया कर्मी
करिक्रम को अपने दर्शको के लिए प्रसारित करते सम्पूर्ण विश्व में मिडिया कर्मी
होली के उत्सव में मुरलीधर घाट पर पधारते नन्द लाल की शोभा यात्रा में साथ चलती गोकुल की गोपिया
होली के उत्सव में मुरलीधर घाट पर पधारते नन्द लाल की शोभा यात्रा में नन्द लाला का सुखपाल
होली के उत्सव में मुरलीधर घाट पर पधारते नन्द लाल की शोभा यात्रा में नाचते गाते गोकुल के गोपाल साथ में देश विदेश के भक्त गण
होली के उत्सव में मुरलीधर घाट पर पधारते नन्द लाल की शोभा यात्रा में नाचते गाते गोकुल के गोपाल साथ में देश विदेश के भक्त गण
होली के उत्सव में मुरलीधर घाट पर पधारते नन्द लाल की शोभा यात्रा में नाचते गाते गोकुल के गोपाल साथ में देश विदेश के भक्त गण और उत्सव में आया एक विदेशी नागिरिक
गोकुल में दीपावली के समय यमुना जी के घटो पे होता भब्य दीपदान महोत्सव
गोकुल के नंद्चोक में सार्वजानिक रूप से होता गिरिराज
पूजा महोत्सव ....